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छुआछूत व जाति-पांत को तिलांजलि देने का संकल्प

अयोध्या: समरसता कुंभ के उद्दघाटन सत्र में वक्ता दर वक्ता समाज में व्याप्त विभेदकारी मानसिकता को दूर कर इसे समरस बनाने का आह्वान किया। इसके लिए किसी ने वेद, पुराण, रामायण तो किसी ने भारतीय सनातन संस्कृति के नायकों व ऋषियों, मुनियों को उद्घाृत करते हुए समाज से जाति-पांत की भावना को उखाड़ फेंकने का आह़्वान किया। वक्ताओं ने कहा कि समानता युक्त समाज के सृजन से ही शक्तिशाली राष्ट्र निर्मित हो सकेगा।

By JagranEdited By: Published: Sun, 16 Dec 2018 01:00 AM (IST)Updated: Sun, 16 Dec 2018 01:00 AM (IST)
छुआछूत व जाति-पांत को तिलांजलि देने का संकल्प
छुआछूत व जाति-पांत को तिलांजलि देने का संकल्प

अयोध्या: समरसता कुंभ के उद्घाटन सत्र में वक्ताओं समाज में व्याप्त विभेदकारी मानसिकता को दूर कर समरस बनाने का आह्वान किया। इसके लिए किसी ने वेद, पुराण, रामायण तो किसी ने भारतीय सनातन संस्कृति के नायकों, ऋषियों, मुनियों को उद्धृत करते हुए समाज से जाति-पांत की भावना को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया। सत्र में अखिल भारतीय सह-सरकार्यवाह भागय्या ने कहा कि समरसता जीवन मूल संदेश है। सनातन धर्म सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। कहा, भारतीय समाज में छुआछूत, अस्पृश्यता का कभी स्थान नहीं रहा। वेद, उपनिषद व रामायण जैसे प्रमुख ग्रंथ भी समरसता का संदेश देते हैं। उन्होंने संत रविदास के वक्तव्य का उल्लेख करते हुए बताया कि जाति के आधार पर कोई छोटा-बड़ा नहीं है।

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पुणे के गो¨वददेव गिरी कहा कि समरसता का अछ्वुत दर्शन कुंभ में किया जा सकता है। विश्व के सभी सम्प्रदाय अलग-अलग होकर भी कुंभ में समरस हो जाते हैं। राष्ट्र के एकात्म का कुंभ एक अद्वितीय उदाहरण है। कुंभ समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा का वाहक है। उन्होंने ¨चता व्यक्त की, भारतीय जनमानस क्या था, अब क्या हो गया है। उन्होंने कहा कि सभी में एक ही परमात्मा का निवास है, इसीलिए छुआछूत की कोई जगह नहीं है।

राज्यमंत्री ग्राम्य विकास डॉ. महेंद्र ¨सह ने कहा, कुंभ का आयोजन पूरे विश्व समुदाय के लिए समरसता का संदेश है। भेद-भाव के बगैर संत समाज, धर्मावलंबी एवं गृहस्थ एक होकर विश्व समुदाय को सांस्कृतिक एकता का संदेश देते है। सनातन परंपरा में सामाजिक भेद-भाव के लिए कोई स्थान नहीं है।

कुलपति प्रो. मनोज दीक्षित ने कहा कि कुंभ का आयोजन आदिकाल से देश में चार स्थानों पर होता है। यह महज धार्मिक आयोजन न होकर हमारी समृद्ध परंपरा का एक हिस्सा है। इससे विश्व समुदाय को राष्ट्रीय एकता एवं वसुधैव कुटुम्बकम की संकल्पना का संदेश मिलता है। कहाकि इस सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखना हमारा कर्तव्य है।


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