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गुमनामी बाबा से स्थापित होता है नेताजी का समीकरण

आज तक सामने नहीं आई गुमनामी बाबा की सचाई स्वंतत्रता के वर्षों बाद भी रहस्य है नेताजी की मौत की सचाई

By JagranEdited By: Published: Sun, 23 Jan 2022 12:22 AM (IST)Updated: Sun, 23 Jan 2022 12:22 AM (IST)
गुमनामी बाबा से स्थापित होता है नेताजी का समीकरण

अयोध्या: वर्ष 1897 में 23 जनवरी को जन्मे स्वतंत्रता के महानायक नेता जी सुभाषचंद्र बोस का उत्तरा‌र्द्ध आजादी के 75 वर्षों बाद में भी अंधेरे में है। एक धारणा यह है कि 18 अगस्त 1945 को ताईहोकू विमान दुर्घटना में नेताजी का निधन हो गया तो दूसरी ओर रामनगरी में प्रवास करने वाले गुमनामी बाबा से भी उनका समीकरण साधा जाता है। गुमनामी बाबा के नेताजी होने का दावा करने वाले मानते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध में धुरी राष्ट्रों की हार के बाद नेताजी जापान से बचते-बचाते रूस पहुंचे और साइबेरिया में कुछ साल बिताने के बाद भारत पहुंचे। देश के जिन चुनिदा स्थलों पर नेताजी ने भूमिगत जीवन व्यतीत किया, उनमें अयोध्या भी थी।

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वर्ष 1974 से 1984 तक गुमनामी बाबा रामनगरी के अयोध्यादेवी मंदिर, लखनउवा हाता एवं रामभवन में रहे। उनसे नाममात्र लोगों को ही मिलने की अनुमति थी। सिर्फ इक्का-दुक्का अति निकट सहयोगियों को छोड़ वे किसी से नहीं मिलते थे। बहुत कोशिश करने पर वे पर्दे की ओट से ही बात करते थे। उन्होंने लोगों से दूरी बरतने का प्रयास किया पर लोग उनके प्रति उत्सुक होते गए। उन्होंने आखिरी के दो साल सिविल लाइंस स्थित रामभवन में गुजारे और वर्ष 1985 में 16 सितंबर को यहीं चिरनिद्रा में लीन हुए। सबसे खास बात तो यह है कि गुमनामी बाबा का अंतिम संस्कार गुप्तारघाट पर ऐसे स्थान पर किया गया, जहां कभी किसी का भी अंतिम संस्कार नहीं होता।

उनके निधन के बाद तो पर्दे से बाहर आईं अटकलों को औचित्य की कसौटी पर कसा जाने लगा। बाबा के पास से प्रचुर सामग्री प्राप्त हुई और इसमें नेताजी से जुड़े दस्तावेज और उनकी ओर इशारा करने वाली उपयोग की अनेक वस्तुएं तथा साहित्य हैं। रामकथा संग्रहालय में भी बाबा के पास से मिलीं करीब पौने तीन हजार वस्तुओं में से चार सौ से अधिक को धरोहर के रूप में संरक्षित किया गया है। उनके पास से आरएसएस के द्वितीय संघचालक गुरु गोलवलकर का पत्र, ब्रिटेन निर्मित टाइप राइटर एवं रिकार्ड प्लेयर, फौज में काम आने वाली दूरबीन, भारत, चीन, रूस आदि के देशों के नक्शे, आजाद हिद फौज के खुफिया विभाग के चीफ डा. पवित्रमोहन राय, आशुतोष काली, सुनीलदास गुप्ता आदि अधिकारियों के पत्र, द्वितीय विश्व युद्ध की अनेक प्रतिबंधित पुस्तकें, रुद्राक्ष की मालाएं, नेताजी के परिवार की तस्वीरें व पत्र, नेता जी की मौत की जांच के लिए गठित खोसला व शाहनवाज आयोग की रिपोर्ट की प्रतियां आदि मिलीं थीं।

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उजागर हो गुमनामी बाबा की सच्चाई

जिस रामभवन में गुमनामी बाबा ने अंतिम सांस ली, उस रामभवन के उत्तराधिकारी एवं सुभाषचंद्र बोस राष्ट्रीय विचार केंद्र के अध्यक्ष शक्ति सिंह का जीवन गुमनामी बाबा की सच्चाई उजागर करने के प्रति समर्पित है। वे नेताजी के प्रति केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता से उत्साहित हैं और अपेक्षा जताते हैं कि केंद्र सरकार गुमनामी बाबा की भी सच्चाई उजागर कर नेताजी के करोड़ों प्रशंसकों से न्याय करे।

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सुर्खियों में रहा यह वाकया

कहा जाता है कि रामनगरी में लखनउवा हाता में प्रवास के दौरान उनकी चर्चा सुनने पर पुलिस का एक अधिकारी उनसे मिलने के लिए अड़ गया था। गुमनामी बाबा ने पर्दे की ओट से ही उस पुलिस अधिकारी को कुछ देर बाहर प्रतीक्षा करने को कहा। इसके बाद जिले के वरिष्ठ अधिकारी वहां पहुंचे और चंद पलों में ही पुलिस अधिकारी का स्थानांतरण सुदूर जिले में कर दिया गया। हालांकि, यह वाकया भी दबा दिया गया। यहां तक कि उस पुलिस अधिकारी का नाम तक सामने नहीं आने दिया गया, जिसने गुमनामी बाबा से जबरन मिलने का प्रयास किया था।


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