आसान नहीं रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटा पाना
सियासी दांव और जिम्मेदारों की नाकामी से कब्जा हुई रेलवे भूमि
अयोध्या : रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटा पाना आसान नहीं है। शहर से लेकर गांव तक रेलवे की भूमि पर हुए अतिक्रमण रेलवे की नाकामी का परिणाम हैं। वर्षों से सीना तान कर खड़ी अवैध इमारतें इसका उदाहरण हैं कि रेलवे अतिक्रमणकारियों से अपनी संपत्ति मुक्त कराने में असफल रहा है। कभी ऐसा नहीं की इन अवैध कब्जों को हटाने के लिए रेलवे आगे नहीं आया। अधिकारी जब भी रेलवे भूमि को अवैध कब्जे से मुक्त कराने पहुंचे तो कभी सियासत अड़ंगा बनी तो कभी स्थानीय लोगों के विरोध ने उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया।
दो साल पहले की ही बात है। फतेहगंज क्षेत्र में रेलवे की भूमि से अतिक्रमण हटाने पहुंचे रेल अधिकारियों को विरोध का सामना करना पड़ा। यहां रेलवे की जमीन पर पहले से ही एक व्यक्ति ने घर बना रखा था। शेष बची भूमि पर भी उसने पिलर बनाना शुरू कर दिया। इंजीनियरिग अनुभाग को भनक लगी तो वह आरपीएफ के साथ मौके पर पहुंच गए। रेलवे अधिकारियों ने विरोध बढ़ता देख स्थानीय पुलिस को भी बुला लिया जब जाकर पिलर का निर्माण रुक सका। मोदहा क्षेत्र में रेलवे की भूमि पर दो गुमटी तक रेलवे नहीं हटा सका। इसलिए कि उसके पास कोर्ट से स्टे था। ऐसे ही कई उदाहरण यहां मौजूद हैं, जो बताते हैं कि रेलवे की भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए पहले सियासी प्रभाव से कार्रवाई को मुक्त बनाना होगा। रेलवे के भी अधिकारियों की जवाबदेही तय करनी होगी। स्थानीय रेलवे अधिकारियों की मानें तो रेलवे की जमीन पर कब्जा हटवाने के लिए जब भी प्रयास हुआ नेतागीरी बड़ा रोड़ा साबित हुई। शांति-व्यवस्था न बिगड़ जाए इसलिए स्थानीय प्रशासन की ओर से भी इस गुनाह को नजरंदाज किया जाता रहा।