विवाद के बावजूद फलती- फूलती रही साझी विरासत
श्रीराम के साथ आस्था के अन्य प्रतिमान से भी युक्त रही है रामनगरी
अयोध्या (रघुवरशरण): रामनगरी श्रीराम के साथ आस्था के अन्य प्रतिमानों से भी युक्त रही है। 1528 ईं में रामजन्मभूमि पर हमले से सदियों तक आघात-प्रतिघात का सामना करने के बावजूद नगरी ने संवाद-सह अस्तित्व की परंपरा को पूरी संवेदना से सहेज कर रखा है। आज भी यह विरासत राम नगरी को विशिष्ट दर्जा देती है और दुनिया के सामने मिसाल है। सच्चाई यह है कि रामनगरी हिदुओं, जैनियों, बौद्धों व सिखों के साथ सूफियों की आस्था से भी गौरवान्वित है। इन सूफियों ने सांप्रदायिक संकीर्णता से ऊपर उठ कर मानवता और प्रेम का संदेश दिया। यहां धूनी रमाने वाले सूफी संतों ने सैयद मुहम्मद इब्राहिम शाह प्रमुख थे। इनका समय पूर्व मध्यकाल माना जाता है। ये ताशकंद के राजकुमार थे और आला रूहानियत से प्रेरित हो युवावस्था में ही सुदीर्घ जल मार्ग से अयोध्या आ पहुंचे। चमत्कारिक रूहानी हैसियत के साथ इब्राहिम शाह प्रेम एवं मानवता का संदेश देने के कारण दोनों समुदायों में समान रूप से लोकप्रिय थे। उन्हें इस संसार से विदा हुए छह सौ वर्ष हुए पर अड़गड़ा के नाम से मशहूर उनकी दरगाह अभी भी जीवंत मानी जाती है। यहां मुस्लिमों से अधिक हिदू आते हैं और उनकी कब्र पर अपनी मुराद पेश करते हैं। बड़ी बुआ के नाम से मशहूर अलैहा बीबी आला रूहानी हैसियत वाली थीं। डॉ. दबीर अहमद की कृति शहर के औलिया के अनुसार बड़ी बुआ अत्यंत नियम संयम से रहने वाली स्त्री फकीर थीं। इनका समय 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से 18वीं शताब्दी के बीच का माना जाता है। उनकी रूहानियत और संदेश किस कदर मानवीय थे, इसका परिचय परमहंस राममंगलदास से मिलता है। दिग्गज संत राममंगलदास का बड़ी बुआ के वजूद से गहन आध्यात्मिक सरोकार था, वे उनकी मजार पर प्राय: जाया करते थे। 1977 में उन्होंने बड़ी बुआ की कब्र का जीर्णोद्धार भी कराया। आध्यात्मिक गुरु जय सिंह चौहान कहते हैं, सूफी संतों का इस्लाम की प्रमुख शाखा के रूप में अपने उद्गम स्थल से लंबा सफर तय कर अयोध्या आना महज संयोग नहीं था, अपितु वे अयोध्या की दिव्यता से वाकिफ थे और अनेक द्वंद के बावजूद रामनगरी ने अपनी विविधता सहेज रखी है। इस्लामिक मान्यता के अनुसार जहां भगवान राम को एक लाख 24 हजार पैगंबर में संभावित माना जाता है, वहीं रामनगरी के ही मणिपर्वत के पृष्ठ में स्थित दरगाह में हजरत शीश को हजरत आदम के बाद दूसरे पैगंबर का दर्जा दिया जाता है। कतिपय विद्वान हजरत आदम का समीकरण सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के मानस पुत्र मनु एवं हजरत शीश का समीकरण मनु के पुत्र महाराज इक्ष्वाकु से स्थापित करते हैं। जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान ऋषभदेव को श्रीराम से भी पूर्व का माना जाता है। अयोध्या ऋषभदेव सहित चार अन्य तीर्थंकरों की जन्म स्थली रही है और युगों बाद भी जैन तीर्थंकरों की विरासत प्रवाहमान है। यहां बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध ने ढाई हजार वर्ष से भी पहले पावस की 16 ऋतुओं में पगवस किया और अनेक कालजयी उपदेश इससी भूमि से दिए। अयोध्या सिख गुरुओं के भी आगमन से गौरवान्वित है। यह विरासत सरयू के प्राचीन तट पर स्थित गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड से अभी भी जीवंत है।