देश भर में नजीर बना गया तमसा का पुनरोद्धार
जल संरक्षण के लिए मिल चुका है प्रथम पुरस्कार मनरेगा से हुआ पुनरोद्धार
अयोध्या: किसी नदी का संरक्षण और पुनरोद्धार कैसे किया जाए, यह सीखना हो तो कुछ पल पौराणिक नदी तमसा के किनारे बिताइए। यह नदी अपना अस्तित्व खो चुकी थी, अब वह पानी से लबालब होकर देश भर में जल संरक्षण की नजीर बन चुकी है। तमसा के भागीरथ पूर्व जिलाधिकारी डॉ. अनिल कुमार थे। उन्होंने नदी के पुनरोद्धार की ऐसी योजना बनाई कि उनका मॉडल जल संरक्षण का देशव्यापी नमूना बन गया। उन्होंने 150 किलोमीटर लंबी तमसा नदी की गहराई एवं चौड़ाई मानक के अनुरूप बनाने के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना से इसके कायाकल्प की न केवल योजना बनाई, बल्कि दो जनवरी 2019 को खुद फावड़ा चला कर शुरुआत की। मौजूदा जिलाधिकारी अनुज कुमार झा ने भी इस मुहिम को जारी रखा। पुनरोद्धार के लिए करीब साढ़े छह लाख मानव दिवस सृजित किये गये। नतीजा यह हुआ कि कि न केवल तमसा नदी पानी से लबालब हो गई, बल्कि जल संरक्षण नवाचार का प्रथम पुरस्कार भी मिला। साल भर पहले तक तमसा का जो स्थान खेत में तब्दील हो चुका था, अब वहां भी नाव चल रही है। यही वजह है कि पानी से लबालब तमसा अब मानो संकल्प सिद्धि की नजीर बन अपनी गौरवमयी विरासत पर इतराती नजर आती है।
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इन ब्लॉकों से होकर गुजरती है तमसा
जिले में पौराणिक तमसा नदी की कुल लंबाई 151 किलोमीटर है। इसमें करीब 25 किलोमीटर दायरा ऐसा था, जो करीब-करीब पूरी तरह विलुप्त था और मैदान में तब्दील हो चुका था। जिले में मवई विकासखंड के लखनीपुर गांव के सरोवर को इस नदी उद्गम स्थल माना जाता है। तमसा नदी जिले में कुल दस ब्लॉकों से होकर गुजरती है, जिसमें मवई, रुदौली, अमानीगंज, सोहावल, मिल्कीपुर, मसौधा, बीकापुर तारुन, पूराबाजार और मयाबाजार शामिल हैं। इन ब्लॉकों के 77 गांवों को तमसा नदी अभिसिचित किए हुए है।
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भगवान राम ने बिताई थी वनवास की पहली रात
तमसा का पौराणिक महत्व इसी से समझा जा सकता है कि भगवान राम ने वन जाते समय पहली रात इसी नदी के तट पर गुजारी थी। रामचरितमानस सहित रामकथा से जुड़े ग्रंथों में इसका उल्लेख भी है। बीकापुर तहसील अंतर्गत तमसा नदी का गौराघाट तट आज भी पौराणिक स्थल के रूप में प्रतिष्ठित है। भगवान राम ने इसी गौराघाट तट पर विश्राम किया था।
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