After Ayodhya Verdict : अयोध्या पर फैसला के बाद चिंता न रार, पक्षकार चाहते रामनगरी का विकास
रामनगरी अयोध्या में चिंता दिखी न रार...। विवाद के मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी हों या हाजी महबूब उनके घर की से सौहार्द का संदेश ही फूटता रहा। दोनों ही न्यायपालिका के साथ खड़े हैं।
अयोध्या [रविप्रकाश श्रीवास्तव]। भगवान राम की नगरी अयोध्या के विवाद पर शनिवार को उच्चतम न्यायालय का फैसला सबको शिरोधार्य है, यह काफी हद तक साफ शनिवार को ही हो गया था। बची-खुची चंद आशंकाएं थीं, वह सारी रविवार को 'रवि' के उदय के साथ ही विलीन हो गईं।
रामनगरी अयोध्या में चिंता दिखी न रार...। विवाद के मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी हों या हाजी महबूब, उनके घर की दरो-दीवार से सौहार्द का संदेश ही फूटता रहा। दोनों ही न्यायपालिका के साथ खड़े दिखे। साथ ही दोनों में दिखी एक ही ख्वाहिश, बहुत हुआ...। वर्षों तक विवाद से अवरुद्ध रहे विकास की रवानी सरयू की लहरों के माफिक रामनगरी में बहनी चाहिए। बेहतर शिक्षा के इंतजाम होने चाहिए, युवाओं को काम मिलना चाहिए ताकि उन्हें दूसरे शहरों के सामने हाथ न फैलाना पड़े।
चिंता से मुक्त परिवार के संग मगन दिखे इकबाल अंसारी
अयोध्या का कोटिया मुहल्ला, जो कल तक बॉलीवुड फिल्म 'पीपली लाइव' बना था, वहां बिल्कुल शांति पसरी है। हां, इकबाल के घर की सुरक्षा कड़ी है। बाहर ही चार कुर्सियां पड़ी हैैं, जिनपर इकबाल अपने भतीजे आसिफ और कुछ अन्य लोगों के साथ बैठकर गुफ्तगू में मशगूल दिखे। तभी उनका मासूम पौत्र शहाबुद्दीन, जो अभी चलना सीख रहा है, गुब्बारा उनकी लेकर भागता है। गिर न पड़े इसलिए इकबाल लपक कर उसे गोद में उठा लेते हैं। कुछ देर शहाबुद्दीन के साथ बिताने के बाद इकबाल की नजर अखबार पर पड़ती है। उसे उठाकर खबरें पढऩे लगते हैं।
खबरनवीस को देख सलाम कर बैठने के लिए कहते हैं। भतीजे आसिफ को चाय लाने के लिए बोल कर इकबाल मुखातिब होते हैं। कहते हैं कि हमारे वालिद मरहूम हाशिम अंसारी ने तो वर्ष 2010 में ही कहा था कि अब विवाद न बढ़ाया जाए। निर्मोही अखाड़ा और विहिप ही पहले कोर्ट गए। इनकी याचिका के बाद हमारे पिता ने याचिका दाखिल की। चाय लेकर पहुंचे इकबाल के भतीजे आसिफ कहते हैं परिवार ही नहीं बल्कि समाज का हर वर्ग चच्चा के फैसले का स्वागत कर रहा है।
चाय की चुस्की के साथ इकबाल आगे कहते हैं कि 20 जुलाई वर्ष 2016 में पिता हाशिम अंसारी का इंतकाल होने के बाद पक्षकार के रूप में वह कायम हुए। अब अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला गया है। हर कोई इसका सम्मान करे। अयोध्या के विकास के बारे में सोचे। इस मुद्दे पर अब सियासत नहीं होनी चाहिए।
आवाम को बंदिशों में देख हाजी महबूब परेशान
टेढ़ी बाजार से हाजी महबूब के घर जाने वाले रास्ते पर कड़ा पहरा है। हाजी के घर का दरवाजा बंद है। खटखटाने पर एक पुलिसकर्मी दरवाजा खोलता है। सवाल करता है कि किससे मिलना है। हाजी साहब से...।
यह सुनकर पुलिसकर्मी एक रजिस्टर लाता है, जिसमें आगंतुक का नाम पता दर्ज करने के बाद हाजी महबूब के कमरे में प्रवेश मिलता है। कमरे में कुछ मुस्लिम धर्मगुरु चर्चा में मशगूल हैं, जो कुछ देर बाद बाहर चले जाते हैं। हाजी अपने सोफे बैठे रहते हैं। उनका पहला सवाल होता है कि आप लोग बताइए...अयोध्या कैसी है? फैसले को लेकर पाबंदियों से जूझ रही आम जनता का कष्ट हाजी की बातों में साफ झलका। कहते हैं कि पाबंदियां बहुत बढ़ गई हैं, लोगों को काफी परेशानी हो रही है। खौर छोडि़ए, अब तो विवाद का पटाक्षेप हो चुका है।
लोग संयम का परिचय दें। रामनगरी के विकास के बारे में सोचें। हाजी फिर सुप्रीम फैसले की ओर लौटते हैं। कहते हैं कि देखिए सरकार तीन महीने में क्या करती है...? जो फैसला आया ठीक है...हम लोग भी जजमेंट का अध्ययन करेंगे। मस्जिद के लिए कहां जमीन देते हैं, इसपर भी गौर किया जाएगा।
हाजी आशंका जाहिर करते हैं कि विवाद पर जो लोग राजनीति की रोटियां सेंकते आए हैं। आशंका जताते हैैं कि ट्रस्ट में भी उन्हीं के आदमी ही होंगे। करीब आधे घंटे की वार्ता में हाजी ने बार-बार अयोध्या के सौहार्द को सहेजने की अपील की। विकास पर ही केंद्रित रहे। उन्होंने बताया कि सभी कोर्ट के फैसले का सम्मान करें। रामनगरी की गंगा-जमुनी तहजीब अटूट है। इसे सहेजना सभी की जिम्मेदारी है।