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After Ayodhya Verdict : आचार्य सत्येंद्रदास बोले- अब बस अयोध्या में राम मंदिर की आस, जीवित रहेंगे तो देखेंगे

After Ayodhya Verdict रामलला के मुख्य अर्चक आचार्य सत्येंद्रदास ने कहते हैं शबरी को रामलला के दर्शन की जैसी व्यग्रता थी वैसी ही व्यग्रता मुझे रामजन्मभूमि की मुक्ति को लेकर थी।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Sat, 16 Nov 2019 10:33 AM (IST)Updated: Sat, 16 Nov 2019 10:35 AM (IST)
After Ayodhya Verdict : आचार्य सत्येंद्रदास बोले- अब बस अयोध्या में राम मंदिर की आस, जीवित रहेंगे तो देखेंगे
After Ayodhya Verdict : आचार्य सत्येंद्रदास बोले- अब बस अयोध्या में राम मंदिर की आस, जीवित रहेंगे तो देखेंगे

अयोध्या [रमाशरण अवस्थी]। श्रीराम की नगरी अयोध्या में रामलला से जिन लोगों का गहन सरोकार है, उनमें प्रधान अर्चक आचार्य सत्येंद्रदास अहम हैं। वह बीते 27 वर्ष से रामलला के अर्चक ही नहीं हैं, उन्हें रामलला से सरोकार की विरासत 1958 में रामनगरी आने साथ मिली। उन्होंने उन अभिरामदास से दीक्षा लेकर साधु जीवन अंगीकार किया। जिन्होंने बजरंगबली की प्रधानतम पीठ हनुमानगढ़ी से जुड़े महंत होने के साथ 22-23 दिसंबर 1949 की रात विवादित ढांचे के नीचे रामलला के प्राकट्य में अहम भूमिका निभायी थी। इसी विरासत के चलते एक मार्च 1992 को लालदास की जगह उन्हें प्रशासनिक रिसीवर ने रामलला का मुख्य अर्चक नियुक्त किया। हालांकि, तब वह संस्कृत महाविद्यालय में व्याकरण पढ़ाते थे मगर, रामलला की पूजा के अवसर को उन्होंने हाथों-हाथ लिया। उनके पुजारी रहते ही ढांचा ध्वंस हुआ।

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रामलला के मुख्य अर्चक आचार्य सत्येंद्रदास ने कहते हैैं कि शबरी को रामलला के दर्शन की जैसी व्यग्रता थी, कुछ वैसी ही व्यग्रता मुझे रामजन्मभूमि की मुक्ति को लेकर थी। फैसला रामभक्तों के लिए उसी तरह है जैसे सूखते धान को पानी मिल गया हो। मंदिर की दावेदारी अनेक उतार-चढ़ाव से गुजरी मगर वह यहां विचलित हुए बिना जहां रामलला के प्रति समर्पण की मिसाल बने रहे, वहीं सांप्रदायिक सहमति-सद्भाव के संवाहक बने। सुप्रीम फैसला आने के बाद की परिस्थितियों को केंद्र में रखकर अयोध्या में रमाशरण अवस्थी ने उनसे विस्तृत बात की। पेश हैैं, उसके अंश...।

सवाल : रामलला के हक में फैसला आए सात दिन हो गए हैं, अब कैसा महसूस कर रहे हैं?

जवाब : त्रेता में शबरी जिस व्यग्रता से भगवान राम के दर्शन की कामना कर रही थीं, रामलला के हक में फैसला आने को लेकर कुछ वैसी ही व्यग्रता हमारे मन में भी थी। रामचरितमानस में भगवान के दर्शन की कामना पूर्ण होने पर गोस्वामी तुलसीदास ने शबरी की भावदशा का वर्णन करते हुए कहा है, सूखत धान परा जिमि पानी। कुछ ऐसी ही भावदशा में मैं ही नहीं, प्रत्येक रामभक्त फैसला आने के बाद से गुजर रहा है।

सवाल : पर आप तो रामलला को काफी करीब से देख रहे हैं, उस हिसाब से कैसा महसूस कर रहे हैं?

जवाब : हां, मैं उनके साथ तिरपाल में दिन गुजारने के साथ इस विडंबना को महसूस करता रहा हूं कि जिन्हें अखिल ब्रह्मांड नायक और चराचर का सर्जक एवं नियंता माना जाता है, उन्हें अपनी ही जन्मभूमि पर खानाबदोशों की तरह रहना पड़ा। मौसम की मार के आगे थर्राते अस्थायी मंदिर में यदि कभी लू के थपेड़ों से रामलला को बचाने की जुगत करता रहा, तो कभी कंपकंपा देने वाली ठंड में रामलला के लिए हीटर लगाने की आवाज बुलंद करता रहा। कोई शक नहीं कि भगवान दुख-सुख से ऊपर होते हैं पर वे भक्तों के अधीन होते हैं। एक भक्त के तौर पर रामलला को समुचित सुविधा मुहैया न करा पाने की लाचारी हमें सदैव सालती रही। अब पक्का हो गया है कि रामलला भव्यतम मंदिर में विराजेंगे और उनकी सेवा-पूजा भी भव्यतम होगी।

सवाल : फैसला आने के बाद अभी कितने दिनों तक रामलला को अस्थायी मंदिर में रहना पड़ेगा?

जवाब : मंदिर निर्माण होने में दो-तीन वर्ष का समय लगेगा। तब तक हम इंतजार करने को तैयार हैं। देश में श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति के लिए 491 वर्ष से इंतजार हो रहा था। जब श्रीराम जन्मभूमि विवाद से मुक्त हो गई, तो मंदिर निर्माण के लिए थोड़ा और इंतजार करने में कुछ हर्ज नहीं है।

सवाल : फैसला आने के बाद भव्य मंदिर निर्माण के साथ नए सिरे से प्रबंधन की भी आहट है। ऐसे में आप रामलला के प्रधान अर्चक के तौर पर अपना भविष्य किस रूप में देखते हैं?

जवाब : रामलला के हक में जिस दिन फैसला आया, उसी दिन हमें सब कुछ मिल गया। अब तो बस भव्य मंदिर निर्माण की चाहत है और जीवित रहेंगे, तो रामलला का भव्य मंदिर भी देखेंगे।

सवाल : फैसला आने के बाद प्रत्येक रामभक्त भव्य-दिव्य मंदिर निर्माण के सपने देखने लगा है। इस कल्पित भव्यता-दिव्यता का पैमाना आपकी दृष्टि से क्या होना चाहिए?

जवाब : यह मंदिर दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर से भी भव्य होना चाहिए और ऐसा बने कि विश्व के पर्यटक इसे देखने आएं।

सवाल : मंदिर के जिस प्रतिरूप के आधार पर 30 वर्षों से शिलाओं की तराशी हो रही है, वह तो अक्षरधाम मंदिर के मुकाबले नहीं ठहरता?

जवाब : मंदिर निर्माण के लिए संभावित शासकीय न्यास को चाहिए कि वह शीर्षस्थ वास्तुविदों से राय लेकर तराशी जा रही शिलाओं का उपयोग सुनिश्चित कराते हुए दुनिया के भव्यतम मंदिर का निर्माण कराए और जरूरत के हिसाब से और भूमि भी अधिग्रहीत की जाए।

सवाल : मंदिर निर्माण के लिए संभावित शासकीय न्यास को लेकर रस्साकसी शुरू हो गई है, इस बारे में आपकी क्या राय है?

जवाब : यह तो वैसे ही है कि गांव बसा नहीं और चोरी होने लगी। 


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