औषधीय पौधे लगाकर वातावरण में प्राण वायु फैला रही हैं दो बहनें
संवाद सहयोगी भरथना कोरोना की तीव्र लहर के चलते वातावरण में दो सगी बहनों द्वारा प्राण वाय
संवाद सहयोगी, भरथना : कोरोना की तीव्र लहर के चलते वातावरण में दो सगी बहनों द्वारा प्राण वायु फैलाने का सराहनीय कार्य किया जा रहा है। इससे आसपास के वातावरण काफी सुधार हुआ है।
नगर भरथना के मोहल्ला महावीर नगर में दो सगी बहनें प्रीतिका व पावनी सविता द्वारा अपने घर की छत पर लगभग आधा सैकड़ा से अधिक औषधीय व सुगन्धित फूलों के पौधों को प्लास्टिक व सीमेंट के गमलों लगाकर वर्तमान में वातावरण में प्रवाहित हो रही प्राण वायु (ऑक्सीजन) की कमी को कुछ हद तक दूर करने का सतत प्रयास किया जा रहा है। दोनों बहनों ने बताया कि बीते तीन-चार वर्षों से विभिन्न प्रकार के औषधीय व सुगंधित पुष्पों वाले पौधों को अपनी घर की छत पर व जीना आदि में गमलों में लगाकर पर्यावरण को शुद्ध करने का प्रयास कर रही हैं। प्रीतिका जो बीएससी की छात्रा है तथा उनकी छोटी बहिन पावनी सविता जो कक्षा 10 की छात्रा है के द्वारा अपनी जान पहचान वालों के यहां जीवन दायिनी तुलसी के पौधों को रोपकर तथा उन्हें संरक्षित कर उनके घरों तक सैकड़ों की संख्या में पहुंचा चुकी है। उन्होंने अपने घर की छत पर गमलों में विभिन्न प्रकार के गुलाब, बेला, चमेली, तुलसी, पोदीना, आक, नींबू, गुड़हल, पथरचटा, चांदनी, हरसिगार, रात की रानी, क्रिसमस ट्री, मीठा नींम, मोरपंखी सहित अन्य कई सुगंधित व औषधीय पौधे लगा रखे हैं। मां की भांति पौधों की देखभाल उन्होंने बताया कि जिस प्रकार एक मां अपने बच्चों की देखरेख करती हैं, उसी तरह पौधों को भोजन के रूप में सप्ताह में उनमें रासायनिक उर्वरक व घर में प्रयोग होने वाली सब्जी व फलों के छिलकों से खाद बनाकर डालती हैं। इस कार्य में उनके छोटे भाई अनुज व माता पिता का पूर्ण सहयोग रहता है। वे शिक्षा के साथ पौधों की देखभाल करती हैं। साप्ताहिक बंदी की अवधि में उनका पूरा समय पौधों की देखरेख एवं उनके संरक्षण में व्यतीत हो रहा है। सभी को लगाने चाहिए पांच पौधे उनका कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति को ज्यादा न हो तो अपने घर में कम से कम पांच पौधों का अवश्य रोपित करना चाहिए जिससे घर का वातावरण तो शुद्ध होगा ही साथ ही उनके संरक्षण में समय अच्छा व्यतीत होगा। ग्रीष्म ऋतु में पौधों की देखभाल एवं उनको संरक्षित करना एक चुनौती से कम नहीं है फिर भी वह भरसक प्रयास करती हैं कि ग्रीष्म ऋतु का उन पर कोई दुष्प्रभाव न पड़े।