हिदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है मां कालिका मंदिर
मनोज तिवारी बकेवर लखना स्थित कालिका देवी का मंदिर हिदू-मुस्लिम सौहार्द की एक मिसाल है। मं
मनोज तिवारी, बकेवर लखना स्थित कालिका देवी का मंदिर हिदू-मुस्लिम सौहार्द की एक मिसाल है। मंदिर के अंदर ही सैयद बाबा की मजार है। मान्यता है कि यहां मां भक्तों की मुराद तभी पूरी करती हैं जब मजार की इबादत भी की जाए। हिदू-मुस्लिम एक भाव से दर्शन करने आते हैं। क्या कहता है इतिहास मंदिर के मुख्य प्रबंधक रवि शंकर शुक्ला बताते हैं कि मंदिर का निर्माण राजा राव जसवंत ने करवाया था। वह यमुना नदी पार कंधेसी धार में स्थापित आदिशक्ति कालिका देवी के भक्त थे। वह रोजाना माता के दर्शन के लिए नदी पार करके जाते थे। रोज की तरह एक दिन दर्शन के लिए जा रहे थे लेकिन यमुना नदी में उफान के कारण वह दर्शन के लिए नदी पार नहीं कर सके। इससे वह इतना परेशान हुए कि अन्न-जल त्याग दिया, जिस पर रात में मां काली ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि निराश न हो जल्द ही लखना में ही विराजमान हो जाएंगी कालिका मां के नाम से जाना जाएगा। तभी एक दिन कारिदों ने राजा को बेरीशाह के बाग में देवी के प्रकट होने की जानकारी दी। राजा वहां पहुंचे तो पीपल का वृक्ष जल रहा था और हर ओर घंटियों की गूंज थी। जब आग शांत हुई तो उसमें से 9 प्रतिमाएं प्रकट हुईं। राजा ने प्रतिमाओं की स्थापना की और करीब 1882 में राजस्थानी शैली का एक भव्य मंदिर बनवाया। राजा वर्गभेद में विश्वास नहीं रखते थे जिससे मजार की स्थापना भी की। भगवान श्रीराम के भाई शत्रुघ्न जब लवणासुर से युद्ध को मथुरा जा रहे थे तो यहां रुके थे, उन्हीं ने मां काली को प्रसन्न करके यहां प्रकट किया था। आंगन भी कच्चा मां काली ने राजा को स्वप्न में दर्शन देकर आदेश दिया था कि मंदिर का आंगन कच्चा ही रखा जाए। मंदिर के पुजारी विनोद कुमार चौबे का कहना है कि आज भी यहां का आंगन कच्चा है जिसका गोबर से लेपन किया जाता है । सेवक आज भी दलित मंदिर का सेवक हमेशा से दलित ही रहा है। राजा ने जब देखा कि दलितों को समाज में सम्मान नहीं दिया जाता तो एलान किया था कि इस मंदिर का सेवक दलित ही होगा। तब से आज तक उसी दलित परिवार के सदस्य मंदिर की सेवा में जुटे हैं। दुर्नाम दस्युओं ने फहराई पताका दस्युओं की भी मंदिर से श्रद्धा जुड़ी रही। दस्यु सम्राट कहे जाने वाले मोहर सिंह, माधौ सिंह, साधव सिंह, मान सिंह, फूलन देवी, फक्कड़ बाबा, निर्भय गुर्जर, रज्जन गुर्जर, अरविद गुर्जर, रामवीर गुर्जर तथा मलखान सिंह ने यहां निडरता से ध्वज पताका फहराई।