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इटावा को नई रियासत बना रहे जंगल के राजा

गौरव डुडेजा इटावा एशियाई बब्बर शेरों की बात हो तो भारत में इनका एक ही बड़ा केंद्र

By JagranEdited By: Published: Sun, 09 Aug 2020 11:38 PM (IST)Updated: Mon, 10 Aug 2020 06:07 AM (IST)
इटावा को नई रियासत बना रहे जंगल के राजा
इटावा को नई रियासत बना रहे जंगल के राजा

गौरव डुडेजा, इटावा : एशियाई बब्बर शेरों की बात हो तो भारत में इनका एक ही बड़ा केंद्र है गुजरात का जूनागढ़, जहां इनका साम्राज्य है। हालांकि, अब जंगल के राजा की एक नई रियासत भी तैयार हो रही है। इसका पता है-उत्तर प्रदेश का इटावा जिला, जहां यमुना नदी किनारे बीहड़ इलाका लॉयन सफारी के रूप में बब्बर शेरों को भाया है। यहां अपने अनुकूल प्राकृत वास मिलने पर इनका कुनबा बढ़ रहा है। पिछले चार में इनकी संख्या 11 से बढ़कर 18 हो चुकी है। आने वाले दस वर्षो यह कुनबा बढ़कर 50 शेरों का हो जाएगा।

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350 हेक्टेयर भूमि में फैला इटावा लॉयन सफारी पार्क एशियाई शेरों के संरक्षण के लिए सुदूर केंद्र के रूप में विकसित हो रहा है। केंद्रीय चिड़िया घर ने प्रदेश सरकार के सहयोग से सफारी को शेरों के ब्रीडिग सेंटर के रूप में चुना है, जिसने वर्ष 2016 से परिणाम देने शुरू कर दिए है। सफारी के अधिकारियों के मुताबिक गुजरात से लाए गए शेर अब यहां के वातावरण में ढल चुके हैं और अपना कुनबा बढ़ा रहे हैं। अनुमान के मुताबिक आने वाले दस वर्षो यहां शेरों की संख्या 50 से 60 हो सकती है।

सात शावकों का हो चुका है जन्म

सुल्तान - 5 अक्टूबर 2016

सिबा - 6 अक्टूबर 2016

बाहुबली - 15 जनवरी 2018

भारत, सोना व रूपा - 26 जून 2019

केसरी - 15 अप्रैल 2020

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लगातार संरक्षण का प्रयास

इटावा सफारी पार्क के उपनिदेशक सुरेश राजपूत का कहना है कि एशियाई शेरों की संख्या बढ़ाने के लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। अभी तक जूनागढ़ में इनके संरक्षण के लिए एकमात्र अभ्यारण्य बना था। इटावा सफारी पार्क ने शुरुआती झटकों के बाद सफलता पाई है। प्रति वर्ष ब्रीडिग का कार्य सफलतापूर्वक चल रहा है।

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योजना के तहत व्यवस्था

- शेरों के लिए अनुकूल वातावरण 30 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान का तैयार करना

-जू कीपर्स की 24 घंटे ड्यूटी, सुबह-शाम डॉक्टर विजिट

- नाइट सेल में बैक्टीरिया संक्रमण समाप्त करने के लिए ब्लो टार्चिग की व्यवस्था

- सफारी में 52 स्थाई व 36 अस्थाई स्टाफ

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भारत में एशियाई बब्बर शेर

एशियाई शेर कभी ईरान से पूर्वी भारत के पलामू तक पाए जाते थे। शिकार और प्राकृत वास कम होने के कारण ये लगातार घटते गए। 1890 के अंत में गुजरात के गिर वनों में शेरों की संख्या 50 से भी कम गई थी। संरक्षण के सरकारी प्रयासों से अब संख्या बढ़कर 500 से अधिक हो गई है। वर्ष 2015 में गणना के मुताबिक 1648.79 वर्ग किलोमीटर के गिर संरक्षित क्षेत्र में इनकी संख्या 523 पाई गई। इस पूरे नेटवर्क क्षेत्र में गिर राष्ट्रीय पार्क, गिर अभ्यारण्य, पानिया अभ्यारण्य, मितियाला अभ्यारण्य के आसपास का आरक्षित वन, संरक्षित वन और अवर्गीकृत वन शामिल हैं।


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