आक्सीजन थी तो फिर कैसे थम गईं मरीजों की सांसें
केस 1 जनता विद्यालय इंटर कालेज बकेवर के भूगोल विषय के प्रवक्ता कौशल किशोर नगर की मड़ैय
केस 1
जनता विद्यालय इंटर कालेज बकेवर के भूगोल विषय के प्रवक्ता कौशल किशोर नगर की मड़ैया शिवनारायण बस्ती में रहते थे। राजकुमारी बताती हैं कि एक मई को कोविड हास्पिटल एल टू में आक्सीजन न होने से पति भर्ती नहीं हो पाए। आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय सैफई ले जाते समय पति ने रास्ते में दम तोड़ दिया। मुझे जिदगी भर अफसोस रहेगा कि पैसा होते हुए भी आक्सीजन उपलब्ध नहीं करा सके। पति की तब जान चली गई, जब आक्सीजन का संकट पूरे देश में था। केस 2
फर्दपुरा चौबिया के निसंतान 72 वर्षीय बदले सिंह कोरोना पॉजिटिव हुए तो पड़ोसी बॉबी उनको 14 मई को कोविड हास्पिटल ले आए। डॉक्टर ने बेड और आक्सीजन न होने का तर्क देकर सैफई का रास्ता दिखा दिया। बॉबी ने आक्सीजन लगाने के लिए माथा रगड़ा, पर डाक्टर ने नहीं पिघले। बॉबी ने बदले सिंह को बेड पर लिटाया और एक घंटे की भाग-दौड़ में तीसरी मंजिल से आक्सीजन कंसंट्रेटर ले आए। लेकिन तब तक बदले सिंह ने अंतिम सांस छोड़ दी। केस 3
जुगरामऊ गांव के सहदेव सिंह को इटावा में इलाज नहीं मिला तो स्वजन औरैया जिला चिकित्सालय ले गए। वहां आक्सीजन सपोर्ट पर थे। 9 मई को ज्यादा हालत बिगड़ी तो कानपुर के लिए लेकर भागे, लेकिन रास्ते में ही आक्सीजन खत्म होने से अंतिम सांस छोड़ दी। उनके भांजे अमित कुशवाहा ने एक-एक सिलिडर चार-चार हजार में खरीदा। सरकारी सिलिडर महज पांच ही मिल सके थे, प्राइवेट स्तर पर 24 घंटे 40-45 सिलिडरों की व्यवस्था करनी पड़ी। केस 4
4 मई रात करीब 11 बजे इटावा कोविड हेल्प डेस्क पर सूचना आई कि अजीतमल में एक सेवानिवृत्त शिक्षक को आक्सीजन की कमी हो रही है। समूह के सदस्य मोबाइल फोन से संपर्क कर ऑक्सीजन की तलाश में सक्रिय हो गए। पता चला कि आक्सीजन इटावा या औरैया में उपलब्ध नहीं है, तो सदस्य अश्वनी कुमार मिश्र तुरंत मरीज के स्वजन को लेकर कानपुर गब्बर गैस सर्विस फजलगंज मरीज के स्वजन को लेकर पहुंचे। रात्रि में लाइन में लगकर सिलिडर भरवाया। सोहम प्रकाश, इटावा 'कोरोना काल में एक भी मौत आक्सीजन की कमी से नहीं हुई।' राज्यसभा में सरकार के इस बयान से कई लोग आहत हैं जिन्होंने आक्सीजन न मिल पाने के कारण अपने स्वजन को खोया। कोरोना की दूसरी लहर में अंतिम सांस लेने वाले कई लोगों के स्वजन आज भी कह रहे हैं कि समय पर आक्सीजन मिल जाती तो वह अपने की जान बचा सकते थे, दूसरी तरफ सीएमओ का कहना है कि दूसरी लहर के दौरान आक्सीजन की कमी होने ही नहीं दी गई।
देश के अन्य शहरों के साथ ही इटावा में भी दूसरी लहर के पीक प्वाइंट 16 अप्रैल से 19 मई तक मौतों से हाहाकार मचा था। इस एक माह में अकेले शहर के यमुना तलहटी श्मशान घाट पर 584 चिताएं सजीं। इसके पीछे वजह तेजी से वायरस का संक्रमण था, तो सरकारी सिस्टम तार-तार। स्वास्थ्य महकमा फेल होने पर शासन के आदेश पर आक्सीजन पूर्ति की कमान डीएम श्रुति सिंह ने संभाली। उन्होंने इस व्यवस्था का नोडल अधिकारी एसडीएम सदर सिद्धार्थ को बनाया। कोविड हास्पिटल एल-टू में रोजाना 40-50 आक्सीजन सिलिडर खपत का औसत था। नुमाइश मैदान में सिलिडर स्टोर बनाया गया। हॉस्पिटल से खाली जाने वाले सिलिडर एसडीएम की मंजूरी से ही जारी हो पा रहे थे। तब डाक्टर से लेकर प्रशासनिक अधिकारी आक्सीजन की कमी स्वीकारते थे, अब उन्हीं डॉक्टरों, अधिकारियों के सुर बदले हुए हैं।
दूसरी तरफ संक्रमण के पीक प्वाइंट के दरम्यान उप्र आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय सैफई में भी ऑक्सीजन प्लांट खराब रहने से दिक्कत आ रही थी। यहां 200 बेड के कोविड हास्पिटल एल-3 में रोजाना 9 से 12 हजार लीटर आक्सीजन की जरूरत पड़ रही थी। इसकी पूर्ति करने के लिए रोजाना टैंकर नोएडा से आता-जाता था। हालात इतने भयावह थे कि 19 अप्रैल से 10 मई तक शहर के अस्पतालों में बेड और आक्सीजन के लिए मारामारी थी। मरीज की टूटती सांसें देखकर स्वजन-रिश्तेदार आक्सीजन की भीख मांग रहे थे। होम आइसोलेशन में मरीज हांफ रहे थे तो हॉस्पिटल के बाहर कतारें थीं। अपनों को जिदगी की सांसें देने के लिए निजी तौर पर महंगे आक्सीजन सिलिडर खरीदकर तीमारदार कंधों और सिर पर ढोने को विवश थे।
पहले चेतावनी की अनसुनी, अब नहीं ले रहे सबक
विशेषज्ञों ने नवंबर में ही चेताया था कि महामारी की बेहद खतरनाक लहर तेजी से आने वाली है। उनकी सलाह थी कि आपात स्थिति के लिए मेडिकल आक्सीजन की पर्याप्त व्यवस्था करें, लेकिन चेतावनी अनसुनी कर दी गई। आखिरकार अप्रैल के दूसरे पखवाड़े में भयावह लहर आ गई। स्वास्थ्य ढांचा चरमरा गया। आक्सीजन की कमी भयावह त्रासदी बन गई। लोग एक अदद सांस के लिए हांफते रहे। कुछ तो हांफते-हांफते दम तोड़ गए और अपने स्वजन को आखिरी दर्दनाक पलों की याद में तड़पते छोड़ गए। अगर समय पर ऑक्सीजन मिल जाता तो आज इनमें से कई लोग जिदा होते। तीमारदार कहते हैं, दूसरी लहर में ऑक्सीजन के लिए सबसे ज्यादा मारामारी हुई, अब सरकार चाहे कुछ भी कहे।
नहीं मानते आक्सीजन की कमी
ऑक्सीजन एक थैरेपी है। चिकित्सकों के मुताबिक आक्सीजन की कमी के चलते किसी मरीज में आर्गन फेलियर हो सकता है और उसकी मौत हो सकती है। जब मरीज के मृत्यु प्रमाणपत्र की बात आएगी तो उस पर आर्गन फेलियर ही मौत की वजह होगी, न कि आक्सीजन की कमी। 'कोरोना काल में पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन की व्यवस्था रही है। प्रशासन की देखरेख में डिमांड मुताबिक आक्सीजन की पूर्ति की जाती रही। संक्रमण के पीक प्वाइंट में भी आक्सीजन की कमी नहीं होने दी गई।'डा. भगवान दास
मुख्य चिकित्सा अधिकारी