रही राष्ट्रीय स्तर तक धमक, अब फीकी हाकी की चमक
1972 में वासिफ अली ने नेशनल हाकी खेल जिला किया गौरवान्वित 1992 में अनिल चतुर्वेदी ने भी हाकी को दी धार
जासं, एटा: समय बदला तो हालात भी बदल गए। कभी राष्ट्रीय खेल हाकी में जिले की धमक राष्ट्रीय स्तर तक रही। अब हालात यह है कि जिला स्तर पर भी हाकी की चमक गायब सी हो गई है। नवोदित खिलाड़ी अपना आत्मविश्वास हाकी के प्रति नहीं बढ़ा पा रहे। वह अंजान हैं कि जिले की प्रतिभाएं राष्ट्रीय स्तर तक हाकी से गौरव दिला चुकी हैं।
एटा के ही श्रेष्ठ हाकी खिलाड़ी वासिफ अली रहमानी ने प्रदेश टीम में स्थान बनाकर राष्ट्रीय आयोजन में इस खेल में एटा को पहचान दिलाई थी। यही नहीं 1990 में भी शहर के ही अनिल कुमार चतुर्वेदी भी हाकी की जादूगरी में नाम कमा चुके हैं।
जिले में 1965 से ही हाकी को लेकर युवाओं में काफी जोश था। राजकीय इंटर कालेज ही नहीं बल्कि शहर के अन्य स्कूलों के विद्यार्थी इकट्ठे होकर प्रैक्टिस करते थे। उस समय खेल शिक्षक आरएस यादव का प्रशिक्षण युवाओं के काम आया। शिक्षक विजयपाल सिंह, मलिखान सिंह ने भी विद्यार्थियों को हाकी से जोड़ा।
वर्ष 1971-72 में जीआइसी के छात्र वासिफ अली प्रदेश टीम में चयनित हुए और राष्ट्रीय मैच खेला। इसी कारण उन्हें रेलवे में नौकरी भी मिली। 1992 में स्टेडियम में आए हाकी कोच ने भी मेहनत की तो इसी दरम्यान अनिल कुमार चतुर्वेदी ने भी प्रदेश तक नाम कमाया। इसके बाद हाकी की चमक अच्छे प्रशिक्षकों और क्रिकेट जैसे के प्रति युवाओं की बढ़ती रुचि में फीकी होती गई। इतना जरूर था कि 2010 में स्टेडियम के क्रीड़ा अधिकारी केपी सिंह की मेहनत से ग्राम मानपुर निवासी अरविद ने प्रदेश हाकी खेलने का सौभाग्य पाया। इसके बाद तो जिले में हाल यहां तक आ गया कि न हॉकी एसोसिएशन है और न ही टीमों की संख्या आधा दर्जन तक है। हाकी के लिए संसाधन तो तब भी नहीं थे, लेकिन लोगों में राष्ट्रीय खेल से लगाव था। 1970 में भी शिक्षकों ने ही संसाधन जुटाए और मेहनत कर प्रशिक्षण दिया। यह प्रोत्साहन ही मेरी ताकत बना कि राष्ट्रीय हाकी तक पहुंचा। अब भी प्रयास हों तो यहां हाकी के धुरंधर सामने आ सकते हैं। वासिफ अली रहमानी
--
युवाओं में हाकी के प्रति आकर्षण बढ़ाने वालों की कमी है। जरूरत समर्पित प्रशिक्षकों की है जो कि प्रतिभाओं को ढूंढ कर तराश सकें। मैं खुद प्रदेश तक खेलने के बाद महसूस करता हूं कि राष्ट्रीय खेल के प्रति शासन की भी गंभीरता कम है। अरविद कुमार