नहीं पहुंची दाल, सिर्फ गेहूं-चावल से औपचारिकता
आंगनबाड़ी केंद्रों पर ड्राई राशन वितरण में अव्यवस्था नहीं कराई गई पैकिग बर्तन लेकर पहुंच रहे लाभार्थी
एटा: भले ही आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए पोषाहार वितरण की पुरानी व्यवस्था बंद हो चुकी है और अब नए सूखे राशन वितरण के प्रयास चल रहे हैं। हाल यह है कि लाभार्थियों के लिए सिर्फ गेहूं चावल मिला है दाल की भी व्यवस्था नहीं हुई, जबकि दूध और घी की बात अभी दूर है। ड्राई राशन की पैकिग व्यवस्था भी नहीं हो सकी है लाभार्थी बर्तन लेकर राशन पा रहे हैं।
सितंबर से ही शासन द्वारा आंगनबाड़ी केंद्रों पर पंजीरी तथा अन्य तरह के पोषण खाद्यान्न की व्यवस्था बंद कर दी गई। एक नवंबर से जनपद में पोषाहार के बजाय अनुपूरक पोषाहार के तहत ड्राई राशन स्वयं सहायता समूह द्वारा वितरित किया जाना था। हालांकि ड्राई राशन के तहत लाभार्थी बच्चों और महिलाओं को गेहूं चावल तथा दाल के अलावा देसी घी और मिल्क पाउडर को भी नई व्यवस्था में शामिल किया गया है लेकिन जिले में आपाधापी के मध्य शुरू हुई योजना अभी भी औपचारिक नजर आ रही है। जहां स्वयं सहायता समूह के माध्यम से आंगनबाड़ी केंद्रों को लाभार्थियों के लिए अलग-अलग रंगों की पैकिग में खाद्यान्न मुहैया कराया जाना था वहां स्थिति यह है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को खुद डीलरों के यहां दौड़ लगाकर गेहूं चावल उठाना पड़ रहा है। ड्राई राशन के उठान को लेकर कार्यकर्ताओं को कोई भी बजट मुहैया नहीं कराया गया। उधर, लाभार्थियों की संख्या के सापेक्ष ड्राई राशन कम मात्रा में भी दिए जाने की शिकायत सामने आ रही है।
समस्या तो यह है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता खुद राशन उठान के बाद लाभार्थियों के लिए पैकिग कर वितरण की जिम्मेदारी व्यवस्था से हटकर कर रही हैं। पैकिग के लिए कुछ भी उपलब्ध नहीं कराया गया ऐसे में निजी खर्चे से पैकिग करनी पड़ रही है। वितरण के लिए दाल व अन्य वस्तुएं अभी भी प्राप्त नहीं हो सकी हैं। कई आंगनबाड़ी कार्यकर्ता तो लाभार्थियों से ही बर्तन मंगा कर ड्राई राशन बांटने को मजबूर है। कार्यकर्ता मंजू लता तथा हेमा कहती हैं कि नई व्यवस्था बिना तैयारी के कार्यकर्ताओं का शोषण मात्र है। जिला कार्यक्रम अधिकारी संजय सिंह का कहना है कि तैयारी चल रही है जल्दी ही सब कुछ व्यवस्थित होगा। तौल के भी नहीं संसाधन
ड्राई राशन लाभार्थियों को निर्धारित मात्रा में दिया जाना है, लेकिन आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के पास तौल के संसाधन भी नहीं है। ऐसे में अंदाजे से बर्तन के द्वारा वितरण करना पड़ रहा है।