माह-ए-रमजान : पहले रोजे का जुनून ही कुछ अलग
माह-ए-रमजान में रोजा रखने वालों की तादाद लंबी है। जब कोई पहला रोजा रखता है तो रोजेदार में जुनून अलग ही दिखाई देता है। ऐसा ही यहां भी हो रहा है तमाम बच्चे पहला रोजा रखकर बेहद खुश हैं। भीषण गर्मी और प्यास उन्हें विचलित नहीं कर पा रही। इधर रमजान में प्रतिदिन इबादतगाहों में तकरीर दे रहे मौलानाओं ने कहा कि एक रोजे का कई गुना सवाब मिलता है।
एटा, जासं। माह-ए-रमजान में रोजा रखने वालों की तादाद लंबी है। जब कोई पहला रोजा रखता है तो रोजेदार में जुनून अलग ही दिखाई देता है। ऐसा ही यहां भी हो रहा है, तमाम बच्चे पहला रोजा रखकर बेहद खुश हैं। भीषण गर्मी और प्यास उन्हें विचलित नहीं कर पा रही। इधर रमजान में प्रतिदिन इबादतगाहों में तकरीर दे रहे मौलानाओं ने कहा कि एक रोजे का कई गुना सवाब मिलता है।
रमजान में कहा जाता है कि यह सिर्फ रहमतों और बरकतों की बारिश का महीना है, बल्कि समूची मानव जाति को प्रेम भाईचारे और इंसानियत का संदेश भी देता है। इस पाक महीने में अल्लाह अपने बंदों पर रहमतों का खजाना लुटाते हैं। पहला रोजा रखने वाली फातिमा कहती हैं कि माह-ए-रमजान नेकी कमाने का महीना है। रमजान में हर नेक कामों का पुण्यफल 70 गुना मिलता है। रोजों की पाबंदी करें। अपने गुनाहों की माफी मांगें। पहली रोजेदार सना बोलीं कि रोजा ने मुझे ताकत बख्शी, हमें महसूस ही नहीं हुआ कि भूख और प्यास कब लगी, रोजे का महत्व में जानती हूं। मौलाना नूर आलम ने कहा कि रोजे के कई रूप में हैं और हर रूप का अपना अलग अर्थ है, जिसने इस मर्म को समझ लिया वही सच्चा रोजेदार है। रोजा हमें बुराइयों से दूर रहने की सीख देता है। रोजे के दिनों में जकात जरूर करनी चाहिए। हर अकीदतमंद का फर्ज यह है कि महीनेभर तक रोजा रखे, नेकी करे, बुराइयों से बचे। इस बीच रोजा इफ्तार की दावतों का भी दौर खूब चल रहा है। हर शाम इफ्तार की दावत दी जा रही हैं।