Move to Jagran APP

पेट की जुगत के लिए श्रम ही बना सहारा

केस एक- जैथरा क्षेत्र के गांव कसौलिया निवासी 10 वर्षीय आदिल वैसे तो प्राइमरी स्कूल में कक्षा चा

By JagranEdited By: Published: Fri, 12 Jun 2020 09:38 PM (IST)Updated: Sat, 13 Jun 2020 06:05 AM (IST)
पेट की जुगत के लिए श्रम ही बना सहारा
पेट की जुगत के लिए श्रम ही बना सहारा

केस एक- जैथरा क्षेत्र के गांव कसौलिया निवासी 10 वर्षीय आदिल वैसे तो प्राइमरी स्कूल में कक्षा चार का छात्र है, लेकिन लॉकडाउन में पारिवारिक मजबूरी ऐसी बनी कि हर रोज सुबह किसान की खेतों से सब्जी ढकेल पर ले जाकर बेच रहा है। पिता अस्थमा के मरीज और तीन अन्य भाई-बहन का भरण-पोषण उसके लिए चुनौती से कम नहीं है।

loksabha election banner

केस दो- ग्राम शहनौआ निवासी 12 वर्षीय अमन लॉकडाउन से पहले एक फाइनेंस कंपनी पर नौकरी करता था। मालिक ने हटा दिया तो मजबूरी में अब ढकेल लगाकर अपने परिवार का गुजारा करने के लिए मजबूर है। दुकानों पर भी काम नहीं मिल रहा है। जागरण संवाददाता, एटा: शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम दिवस था। भले ही यह दिवस बाल मजदूरों को बाल श्रम से दूर कर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए हो, लेकिन ज्यादातर बालश्रमिक इस दिवस से अनजान सुबह से ही पेट भरने की जुगत में अपने काम में जुटे नजर आए। उधर कोरोना संक्रमण के इन हालातों में जिम्मेदार भी इन बाल श्रमिकों के जख्मों पर मरहम लगाने से दूर ही रहे।

कहने को बाल श्रम को अभिशाप तथा कानूनन अपराध भी कहा जाता है। उधर बाल श्रम के पीछे पेट की जुगत भी छुपी है। कहने को पहले भी कहीं चाय, होटल जहां तक की स्वास्थ्य के लिए हितकर न होने वाले व्यवसाय में भी बाल श्रमिकों को काम करते हुए देखा जाता रहा है। इस बार तो हालात अलग ही थे। दो महीने के समय लॉकडाउन प्रभावी रहने के कारण तमाम गरीब परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट है। सिर्फ मुखिया की मजदूरी से काम नहीं चल पा रहा। एक महीने में ही बाल श्रम का परि²श्य तेजी के साथ दिखाई दे रहा है।

प्रतिष्ठानों और अन्य क्षेत्रों में काम न होने के कारण अब बाल श्रमिक बनकर गांव देहातों के बच्चे सब्जी फल या अन्य सामान की ढकेल दौड़ा रहे हैं। वहीं तरह-तरह से शर्म कर परिवार के भरण-पोषण में जितना संभव है इतना सहयोग कर रहे हैं। अब तो कोरोना ने बाल श्रम को और ज्यादा हवा दी है। जहां देखो वहीं जगह-जगह बच्चे पसीना बहाते 2 जून की रोटी के लिए प्रयासरत हैं। दिवस पर भी प्रशासन की नजर इन पर नहीं थी कि उनके लिए भी कुछ सोचा जाए। इन बच्चों की श्रम करने की मजबूरी पर बात की जाए तो उनके हालातों पर भी रोना आ जाए।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.