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देश के लिए कुर्बान कर दी जमींदारी

जागरण संवाददाता, एटा : जिले में आजादी की जंग किसी ने हथियार से लड़ी तो किसी ने कलम से, लेकि न कुछ ऐसे भी लोग थे जिन्होंने यह लडाई कानून से लडी।

By JagranEdited By: Published: Mon, 06 Aug 2018 05:09 PM (IST)Updated: Mon, 06 Aug 2018 05:09 PM (IST)
देश के लिए कुर्बान कर दी जमींदारी
देश के लिए कुर्बान कर दी जमींदारी

जागरण संवाददाता, एटा : जिले में आजादी की जंग किसी ने हथियार से लड़ी तो किसी ने कलम से, लेकिन कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने यह लड़ाई कानून से लड़ी। इन रणबांकुरों को बदले में अपनी जमींदारी गवानी पड़ी। क्रांति पर जमींदारी कुर्बान करने वाले उस जमाने के वकीलों की इस जिले में लंबी सूची है। इन्हीं में से गिरिजाशंकर चतुर्वेदी, बाबू राजबहादुर और भोलानाथ जैसे वकीलों के नाम स्वर्ण अक्षरों में इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं।

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पंडित गिरिजाशंकर चतुर्वेदी उस जमाने में राजा का रामपुर की स्टेट चंदनपुर के जमींदार थे। ब्रिटिश काल में उन्होंने कानून की पढ़ाई की और बैरिस्टर बने। 1942 के आंदोलन में पश्चिम बंगाल के महान क्रांतिकारी योगेशचंद्र चटर्जी उन दिनों एटा जनपद में आजादी का बिगुल फूंक रहे थे। तभी कासगंज में क्रांतिकारियों और अंग्रेजों में मुठभेड़ हुई, जिसमें दो अंग्रेज सिपाही घायल हुए। इस मामले में योगेशचंद्र चटर्जी को कासगंज षड़यंत्र केस का आरोपित बना दिया गया।

एक दिन चटर्जी को सोरों की जयपुर धर्मशाला में गिरफ्तार कर लिया। उस वक्त वे वहां भाषण दे रहे थे। पुलिस जब उन्हें गिरफ्तार करके ले गई और अगले दिन अदालत में पेश करने की तैयारी की जा रही थी, तभी अंग्रेजों ने एलान कर दिया कि जो भी वकील चटर्जी का केस लड़ेगा उसे दंड भुगतना होगा। यह घोर तानाशाही थी। गिरिजाशंकर चतुर्वेदी को अंग्रेजों का एलान चुभ गया और उन्होंने उसी क्षण फैसला किया कि वे चटर्जी का केस लड़ेंगे। अगले दिन उन्होंने अदालत में वकालतनामा लगा दिया। बस फिर क्या था गिरिजाशंकर अंग्रेजों की नजर में चढ़ गए और उन्होंने चंदनपुर की जमींदारी उनसे छीन ली। इसके अलावा और भी तमाम जमींदार यहां थे, जिनकी जमींदारी अंग्रेज छीनते चले गए। इनमें कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अंग्रेजों से हाथ मिला मिला तो उन्हें छोड़ दिया गया।

इसके बाद वकील ने क्रांति आंदोलन में खुल्लमखुल्ला भाग लेना शुरू कर दिया। तमाम सभाएं की। एक अंग्रेज अधिकारी हटसन से उनकी कई बार तकरार हुई। अंग्रेजों ने गिरिजाशंकर को मानसिक प्रताड़ना भी दी। इनके अलावा एक और क्रांतिकारी बाबूराम वर्मा के साथ भी कई जमींदार वकील थे। जैसे कि रामस्वरूप मुख्त्यार, भोलानाथ, बाबू राजबहादुर आदि ऐसे अधिवक्ता थे जो जिले में क्रांतिकारियों के केस मुफ्त में लड़ते थे। एक बार एटा के 250 क्रांतिकारी एक साथ गिरफ्तार किए गए और अधिवक्ताओं ने इन सभी को अगले दिन ही पैरवी कर बरी करा लिया।

आजादी के आंदोलन के दिनों में जो अधिवक्ता काम कर रहे थे उन्हें अपने पेशे से ज्यादा देश से प्यार था। गिरिजाशंकर चतुर्वेदी के भतीजे अनुपम मिश्रा बताते हैं कि उन्होंने उस समय के अधिवक्ताओं के बारे में तमाम किस्से सुने हैं। अच्छी बात यह है कि वे सब इतिहास में दर्ज हैं। उनके चाचा परिवारीजनों को आजादी की लड़ाई के किस्से सुनाते थे। उन्होंने जंग-ए-आजादी के लिए कानून को हथियार बनाया।


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