स्वस्थ समाज: मासूमों की जिदगी में भर रहे रंग
दिल में छेद और कटे होंठ व तालू का दिला रहे इलाज शीतलपुर क्षेत्र के चिकित्सकीय दल ने बदली लोगों की सोच
एटा: मासूमों के जीवन में मुस्कान के रंग भर रहे हैं। दिल में छेद और कटे होंठ-तालू के कारण दर्जनभर बच्चों के सामान्य जीवन पर संकट मंडरा रहा था। परिवार के माली हालात ऐसे नहीं थे कि निजी अस्पतालों में इलाज करा सकें। सरकार ने मुफ्त इलाज की सुविधा शुरू की, लेकिन उन्हें सरकारी इंतजामों पर भरोसा नहीं था।
ऐसे में शीतलपुर ब्लाक क्षेत्र के चार युवा चिकित्सक व कर्मचारियों की टीम लोगों का नजरिया बदलने को आगे आई। उन्हें समझाया और आश्वस्त किया। इन बच्चों के आपरेशन कराए और अब वो सामान्य बच्चों की तरह खिलखिला रहे हैं। इनकी हंसी स्वजनों के चेहरे पर भी मुस्कान बिखेर रही है। साथ ही अन्य लोगों में भी सरकारी प्रयासों को लेकर रुचि बढ़ रही है।
आंखों के सामने बच्चों को तिल-तिल कर मरते या तड़पते देखने से बड़ा दुख कोई नहीं हो सकता। कुछ ऐसे हालात उन गरीब परिवारों में बन जाते हैं, जो इलाज कराने में सक्षम नहीं होते। इस तरह के परिवारों के लिए आरबीएसके (राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम) ने कुछ उम्मीदें जगाईं, लेकिन सरकारी इलाज को लेकर अधिकांश लोग आश्वस्त नहीं होते। उन्हें सरकारी सेवाओं पर भरोसा न होने के कारण बीमार बच्चों का भी इलाज कराने को तैयार नहीं होते हैं। शीतलपुर ब्लाक क्षेत्र की आरबीएसके टीम में शामिल डा. रविद्र चौहान, डा. पंकज राठौर और राहुल चौहान व एस्टर को भी इस तरह की परिस्थितियों से जूझना पड़ा। इसके बाद उन्होंने योजना तय कर शिक्षित लोग, प्रधान, सचिव आदि से सहयोग लेकर लोगों को जागरूक करना शुरू किया। लोग समझे और भरोसा जताया तो इलाज का सिलसिला शुरू हो गया। टीम ने तीन बच्चों के सीएचडी (दिल में छेद) के आपरेशन कराया। निजी तौर पर इसका इलाज काफी महंगा है। क्लैफ्ट लिप एंड पैलेट (कटे होठ-तालू) के छह बच्चों के आपरेशन अलीगढ़ ले जाकर कराए। आपरेशन की कतार में 10 बच्चे:
दिल में छेद के आपरेशन के लिए 10 और बच्चे कतार में हैं। टीम की काउंसिलिग पर उनके स्वजन अलीगढ़ जाकर चिकित्सकीय परामर्श ले आए हैं। इन्हें अगले महीनों में आपरेशन का समय दिया गया है।
पहले की तुलना में अब इस कार्यक्रम और चिकित्सा सेवा पर लोगों का भरोसा काफी बढ़ा है। जैसे-जैसे बच्चे इलाज के बाद स्वस्थ हो रहे हैं, अन्य प्रभावित बच्चों के स्वजन संपर्क कर रहे हैं। कोरोना संक्रमण काल के चलते इस साल संख्या कम रही है।
- डा. रविद्र चौहान