हर तीसरे स्कूल में नौनिहालों के सिर पर मौत का साया
बच्चे जब स्कूल में पढ़ते हैं तो मन में डर बना रहता है कि कहीं छ
एटा, जागरण संवाददाता : बच्चे जब स्कूल में पढ़ते हैं तो मन में डर बना रहता है कि कहीं छत न गिर जाए। दीवारें दरक रहीं हैं और छतों के लेंटर टूटे हैं। तमाम शौचालयों पर छत ही नहीं है, पुराने भवन इतने जर्जर हैं कि कभी भी गिर सकते हैं, लेकिन अफसरों की नींद नहीं टूटती। स्थिति यह है कि लगभग हर तीसरे स्कूल में नौनिहालों के सिर पर मौत का साया मंडरा रहा है।
बुधवार को जागरण टीम ने कई स्कूलों में जाकर पड़ताल की। तमाम स्कूलों में भयावह नजारा देखने को मिला। स्कूलों की जब दरो-दीवार देखी गईं तो उन्होंने खुद ही अपनी स्थिति बयां कर दी। शहर से ही लगा स्कूल ग्राम पंचायत शीतलपुर में है, यहां की प्राइमरी पाठशाला के शौचालय पर छत ही नहीं थी, सिर्फ टीनशेड डालकर काम चलाया जा रहा है। बच्चे नाला पार करके स्कूल पहुंचते हैं, गेट पर पानी भरा रहता है। मारहरा विकास खंड क्षेत्र के गांव मोहनसती स्थित प्राथमिक विद्यालय की हालत तो और भी ज्यादा खस्ता है। इसकी छतों में छेद हो गए हैं, कई स्थानों पर प्लास्टर उखड़ चुका है। खास बात यह है कि इस विद्यालय को बने ज्यादा समय नहीं हुआ। घटिया निर्माण सामग्री का प्रयोग किया गया इस वजह से यह हालत हुई। मिरहची क्षेत्र के गांव लोधामई के स्कूल की हालत देखकर हैरानी होती है कि आखिर बच्चों को खतरे के मुंह में क्यों भेजा जा रहा है। इस स्कूल की हर दीवार दरकी हुई है, छतें कभी भी गिर सकती हैं। निधौली कलां के गांव मरगांया स्थित प्राथमिक विद्यालय की हालत खराब है। वहां भी कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। जलेसर में 100 साल पुराना जर्जर स्कूल
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जलेसर में ब्रिटिश कालीन टाउन प्राइमरी विद्यालय अत्यंत जर्जर होने के बाद शिक्षा विभाग ने इस विद्यालय के स्थान पर नया स्कूल बनवाने के लिए कोई पहल नहीं की। हालांकि इस विद्यालय को लेकर रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को भेजी जा चुकी हैं। इन गांवों में भी हालत खराब
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जिले में 1361 प्राइमरी और 556 जूनियर हाईस्कूल हैं, जिनमें से अधिकांश की हालत खस्ता है। यही स्थिति प्राथमिक विद्यालय पवरा, मिसौली, खेड़ा ग्वारऊ, अकबरपुर सांथा, मोहनपुर, नगला चतुरी, तिरखा, पटना,आलमपुर, गोबरा, जमालपुर दुर्जन व पूर्व माध्यमिक विद्यालय कासिमपुर की है, जबकि प्राथमिक विद्यालय महानमई के मुख्य द्वार पर सामुदायिक विकास केंद्र की जर्जर दीवार बच्चों के लिए खतरा बनी हुई है। प्रधान के खाते में आता पैसा
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स्कूलों की हालत दुरुस्त कराने के लिए पैसा शासन से प्रधान के खाते में आता है और उसके बाद प्रधान व सचिव तथा प्रधानाध्यापक की सहमति से निर्माण कार्य कराया जाता है, लेकिन प्रधानाध्यापकों की शिकायत है कि प्रधान सुनवाई ही नहीं करते, खातों की जांच होनी चाहिए। दौरा करके चले जाते हैं अफसर
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अफसरों की नजर ऐसे स्कूलों पर नहीं पहुंचती जो जर्जर हैं। अगर कोई अधिकारी पहुंच भी गया तो वह ध्यान नहीं देते। इस कारण नए स्कूलों के लिए कोई पहल ही नहीं हो पाती। यही वजह है कि पुरानी इमारतें जर्जर बनी हुईं हैं। -------
जिन विद्यालयों की स्थिति जर्जर है उनमें सुधार कराने के निर्देश सभी अधिकारियों को दे दिए गए हैं। जर्जर विद्यालयों को सूचीबद्ध किया जा रहा है, जो भवन पूरी तरह जीर्ण-शीर्ण हैं वहां नए स्कूल का निर्माण कराने को कहा गया है।
- सुखलाल भारती, जिलाधिकारी एटा