नीम बड़ा प्यारा, श्रद्धांजलि में भंडारा
कुलदीप माहेश्वरी,एटा, मिरहची: पर्यावरण के प्रति यह नई चेतना की तस्वीर है। हरियाली से हमारे प्यार की
कुलदीप माहेश्वरी,एटा, मिरहची: पर्यावरण के प्रति यह नई चेतना की तस्वीर है। हरियाली से हमारे प्यार की गहराई को बताती है। पेड़ किस तरह हमारी जिंदगी को सींचते हैं, यह झलक भी दिखाती है। न जाने कितने लोगों को अपनी शीतलता की मिठास का अहसास करा चुके एक बूढ़े पेड़ को एटा-कासगंज फोरलेन में काटा जा रहा है, तो लोगों ने विदाई की मिसाल पेश की। उसके सीने पर पर आरी चलने से पहले व्यापारियों ने उसे गुब्बारे और फूलों से सजाया। पूजा कर भंडारा कराया।
कस्बा के मुख्य चौराहे पर जिन्हैरा रोड के किनारे करीब 125 वर्ष पुराना नीम का बूढ़ा पेड़ है, जिसकी छाया में सैकड़ों लोग हर रोज राहत पाते हैं। अब कस्बे से होकर फोरलेन सड़क निर्माण की राह में यह आ रहा है। ऐसे में इसे कटान के लिए चिन्हित किया है। इससे लोग दुखी हैं। आखिर बहुत से इसकी छांव में खेले-कूदे हैं। गर्मियों में इसका आश्रय लेते रहे हैं।
वैसे पहले लोगों ने इसे बचाने की कोशिश की। एनएचएआइ अधिकारियों से मुलाकात कर पेड़ न काटने का अनुरोध किया। हालांकि, उन्होंने रोड एलाइनमेंट का वास्ता देकर इसे बचा पाने से इन्कार कर दिया। इसके बाद लोगों ने इसे श्रद्धांजलि देने की तैयारी की। शनिवार को पेड़ को फूलों और गुब्बारों से नीम को बैंड-बाजे के साथ श्रद्धांजलि दी। तेरहवीं संस्कार के रूप में पूजा-अर्चना की गई। इसके बाद भंडारा किया गया। इस नीम के पेड़ के नीचे बैठकर मिठाई बेचने वाले राजेंद्र कुमार (80) साहू ने बताया कि उन्होंने इसे बचपन से ऐसा ही देखा है। वह इसके नीचे बैठकर जीवन के 40 साल गुजार चुके हैं। वह बताते हैं कि विशालकाय पेड़ होने के बाद भी आंधी-तूफान में इससे किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ। वहीं छोटेलाल साहू कहते हैं कि न जाने कितने लोगों के रोजगार के लिए इसने अपना आश्रय दिया। कार्यक्रम में गोपाल साहू, सुनहरी खां, सहनुद्दीन, पप्पू साहू, वेदप्रकाश, सुरेंद्र कुशवाहा, रियासत अली भी थे, जो दुखी मन से पेड़ को विदाई दे रहे थे। नीम की औसत आयु डेढ़ सौ वर्ष
आगरा के वनस्पति विज्ञानी डा सुरेंद्र सिंह के अनुसार यूं तो नीम अधिकतम आयु 100-150 साल ही होती है।
हो सकता है ट्रांसप्लांट
डॉ. सिंह बताते हैं कि पेड़ को ट्रांसप्लांट किया जा सकता है, लेकिन यह महंगा होता है। आगरा-दिल्ली सिक्स लेन प्रोजेक्ट में सैकड़ों पेड़ दूसरी जगह स्थापित किए गए। इसके लिए लगभग 15 हजार रुपये प्रति पेड़ का भुगतान एक निजी कंपनी को किया गया था।