पर्यावरण संरक्षण संग दे रहे खेती में जल बचत का ज्ञान
खेतीबाड़ी में पर्यावरण के लिए बने खतरे से तो वह पहले भी किसानों क
एटा, जागरण संवाददाता: खेतीबाड़ी में पर्यावरण के लिए बने खतरे से तो वह पहले भी किसानों को जागरूक कर रहे थे। खारा पानी क्षेत्र में सिचाई की समस्या और किसानों में जागरूकता की कमी उन्हें खलती रहती। एक बार गुजरात व हरियाणा के किसानों की खेती को देखा तो पहले खुद सिचाई में जल संरक्षण के उपाय किए और अन्य किसानों को भी डिप व स्प्रिंकलर से सिचाई को जागरूकता की मुहिम छेड़ी। सैकड़ों किसान प्रेरित हुए और लाभ उठा रहे हैं।
जलेसर क्षेत्र में दो दर्जन से ज्यादा गांव खारे पानी की चपेट में हैं। इन्हीं में से सकरौली क्षेत्र का एक गांव नगला सुखदेव भी है। यहां खेती के लिए मीठे पानी की व्यवस्था हर किसान के बस की बात नहीं। खेती की लागत इसी कारण बढ़ जाती है। नगला सुखदेव निवासी कृषक लटूरी सिंह प्रगतिशील कृषक हैं। वह पहले पर्यावरण संरक्षण के लिए किसानों को जैविक खेती सिखाते रहे। वर्ष 2013-14 में उन्हें हरियाणा और गुजरात में कुछ ऐसे क्षेत्रों में खेती देखने को मिली जहां पानी की समस्या थी।
वहां के किसान डिप और स्प्रिंकलर खेती खुद निर्मित उपकरणों से कर 60 फीसद से ज्यादा पानी सिचाई में बचा रहे थे। उसी तकनीकी को उन्होंने 2014 में खुद शुरू किया। वर्षा जल संचयन के लिए खेतों के सहारे खराब जमीन में छोटे गड्ढे कराए, जिनका उपयोग खास जरूरत पर किया जाता है। वह खुद भी 200 से ज्यादा बीघा आलू की फसल में बौछारी सिचाई और बारिश का पानी प्रयोग करने लगे। अच्छा लाभ हुआ तो खारा पानी क्षेत्र के ही नहीं बल्कि सिचाई लागत कम करने को अन्य किसान भी इस विधि को अपना रहे हैं। वह जगह-जगह पर्यावरण हित के साथ जल संचयन और संरक्षण को भी जागरूक कर रहे हैं। धौलेश्वर के मुकेश भी कर रहे जागरूक
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निधौलीकलां के धौलेश्वर गांव निवासी युवा कृषक मुकेश कुमार काफी पर्यावरण प्रेमी हैं। उन्होंने पिछले तीन सालों से रासायनिक खादों को तौबा कर अजोला वनस्पति से खेती शुरू की। वहीं सिचाई में प्लास्टिक के पाइपों में छेद कर सस्ती डिप सिचाई का भी यंत्र बनाया। अजोला से खादों की लागत कम और पर्यावरण संरक्षण तो अपने देशी डिप यंत्र से जल संरक्षण कर औरों को भी नसीहत दे रहे हैं।