उम्मीद 2020: पर्यावरण प्रेमी बन रसायनमुक्त खेती का दे रहे मंत्र
अच्छी फसलों के लिए पहले तो खुद भी रासायनिक खादों और कीटनाशक द
एटा, जागरण संवाददाता: अच्छी फसलों के लिए पहले तो खुद भी रासायनिक खादों और कीटनाशक दवाओं का प्रयोग किया। पांच साल पहले जब जहरीली खेती के जनस्वास्थ्य पर प्रभाव और पर्यावरण के लिए बढ़ते दुष्परिणामों को जाना तो उनकी सोच ही बदल गई। पहले खुद रसायनमुक्त खेती और देसी कीटनाशकों से अच्छा लाभ पाया तो वह पर्यावरण प्रेमी बन गए। खुद जैविक उर्वरक व कीटनाशक तैयार करने लगे। इसके बाद वह अब दूसरे किसानों को भी रसायनमुक्त खेती का मंत्र दे रहे हैं।
ऐसे पर्यावरण प्रेमी विकास खंड अवागढ़ के गांव मितरौल निवासी प्रगतिशील किसान गंगा सिंह हैं। पांच साल पहले उन्हें पर्यावरण और शून्य लागत खेती के प्रणेता सुभाष पालेकर का एक लेख पढ़ने को मिला। उस लेख में रासायनिक उर्वरक व कीटनाशकों से ज्यादा लागत और जहरीले होते पर्यावरण को लेकर उनकी वेदना ने गंगा सिंह को इस तरह प्रभावित किया कि वह जैविक और रसायनमुक्त खेती के बारे में जानने के लिए कृषि विशेषज्ञों के पास एक पखवाड़े तक दौड़ते रहे। मन फिर भी नहीं भरा तो महाराष्ट्र जाकर सुभाष पालेकर की कार्यशाला में प्रशिक्षण पाया। इसी के बाद उन्होंने वर्मी कंपोस्ट और हरी खाद से जैविक खेती की शुरूआत की।
पहली बार खेती बेहतर रही तो उत्साह बढ़ गया और घर पर गोबर, गोमूत्र, बेसन, गुड़ के अलावा पीपल या बरगद पेड़ की जड़ के आसपास की मिट्टी को पानी में घोलकर बेहतर उर्वरक बनाकर प्रयोग करना शुरू कर दिया। कीटनाशक के तौर पर भी गोमूत्र, छाछ, चूना, नीम पत्ती, छाल आदि के मिश्रण का प्रयोग किया। इन देशी नुस्खों का हर फसल में अच्छा लाभ और लागत कम हुई। तभी से वह जैविक खेती के संवाहक बन गए। खेती के अलावा वह जैविक बागवानी भी कर रहे हैं। गंगा सिंह मानते हैं कि किसान के घाटे में रहने का रोना उनकी आदत से है। वह पर्यावरण हित समझकर रसायन मुक्त खेती करें तो अच्छा लाभ पा सकते हैं। 40 फीसदी तक लागत घरेलू उपायों से हो सकती है। औषधि खेती को भी दे रहे बढ़ावा
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दो साल पहले गंगा सिंह ने जाना कि जो औषधि खेती हो रही है, उसमें भी रसायनों का प्रयोग उसके लाभों से ज्यादा नुकसानदेय है। ऐसे में उन्होंने लहसुन, अजवाइन, सितावर, अकरकरा की औषधि खेती जैविक तरीके से शुरू की। वह बताते हैं कि रसायन मुक्त होने के कारण उनके यह उत्पाद औरों से ज्यादा महंगे बिकते हैं। कृषि कार्यों के साथ बदल रहे सोच
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अपनी किसानी के साथ वह पर्यावरण संरक्षण की मुहिम आगे बढ़ाने के लिए खुद दौड़-दौड़ कर किसानों को जागरूक कर रहे हैं। किसान पाठशालाओं का आयोजन हो या फिर कहीं भी कृषि गोष्ठी में वह अपने अनुभवों को साझा कर अन्य किसानों की सोच बदलने को प्रयासरत हैं। उन्हें जागरूकता कार्यक्रमों में भी बुलाया जाता है। वह आने जाने का खर्चा भी नहीं लेते।