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मुश्किलों में सुरक्षा की ढाल है पिता

पिता खुदा की नेमत है पिता समझ का दरिया। पिता से है छांव सिर पर व

By JagranEdited By: Published: Sat, 20 Jun 2020 10:07 PM (IST)Updated: Sun, 21 Jun 2020 06:01 AM (IST)
मुश्किलों में सुरक्षा की ढाल है पिता
मुश्किलों में सुरक्षा की ढाल है पिता

एटा,जागरण संवाददाता : पिता खुदा की नेमत है, पिता समझ का दरिया। पिता से है छांव सिर पर, वह राहत का जरिया। ये पंक्तियां भी पिता के महान व्यक्तित्व के महत्व को रेखांकित करने में असमर्थ हैं, क्योंकि पिता का अस्तित्व मात्र ही संतान के लिए ब्रह्मांड से भी व्यापक है और सागर से भी गहरा है। उनके अनकहे शब्द भी खुद में कई शब्दों को समेटे हैं और उनकी हर एक बात में अनेक सबक हैं। उनकी परछाई में सुरक्षा की राहत है तो उनके कदमों में जन्नत के निशां..। इस बार लॉकडाउन में पिता से रही न•ादीकियां इस दिवस के लिए और खास है। दिवस पर अपने पिता के प्रति कुछ खास स्मृतियां सजो रहे हैं उनके पुत्र। बाहर सख्त अंदर से कोमल हैं मेरे पिता

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मेरे पिता डा. राकेश सक्सेना कॉलेज के एक कठोर अनुशासक के रूप में प्रारंभ से लेकर अब तक वटवृक्ष की तरह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपने सहयोग की मजबूत जड़ों से संरक्षण प्रदान करते आ रहे हैं। ये सही है कि अधिकांश बच्चे मां से अधिक जुड़े होते हैं, उन्हें अपना संबल मानते हैं किन्तु जीवन के बड़े संघर्ष एवं विपदा में पिता को ही याद करते हैं। मुझे भी यही लगता है कि जब तक पिता हैं तब तक मैं चिता मुक्त हूँ, समस्याओं का समाधान उन पर छोड़ सकती हूँ। मेरे पिता की मेरे लिए वाणी कठोर है पर मधुर सुखद परिणाम के लिए। आदेश स़ख्त हैं, नियम कठोर हैं, कार्य सम्पन्न कराने का ढंग आदेशात्मक है। परंतु ये सब एकदम नारियल के फल की तरह बाहर से स़ख्त अंदर से कोमल है। शैक्षणिक क्षेत्र में उनका सहयोग, योगदान अप्रतिम है। उनका कर्नल जैसा आदेश एवं रवैया जहां बहुत क्रोध दिलाता है। वहीं उस आदेश एवं रवैये के दूरगामी परिणाम सुखद अहसास की अनुभूति कराते हैं।

तूलिका सक्सेना, शिक्षिका एटा सिर्फ पिता नहीं मित्र भी है मेरे पापा

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जैसे-जैसे मैं बड़ा हुआ, मुझे महसूस हुआ कि पापा मनमोहन वर्मा एड. होने के साथ साथ एक मित्र भी हैं। यह गुण उन्हें अन्य सभी से अलग करता है और मैं उन जैसा पिता पाकर खुद को भाग्यशाली मानता हूं। मुझे ऐसी घटना याद नहीं आ रही है, जहां उन्होंने अपने बच्चों पर हाथ उठाने या डांटने का प्रयास किया होगा। स्वभाव से बेहद सुरक्षात्मक होने के कारण, जब से मैंने और मेरी बड़ी बहन ने स्कूल, स्नातक और काम के लिए अपने गृहनगर से बाहर कदम रखा है, एक भी दिन नहीं है, वह हमें दैनिक आधार पर चेक रखने के लिए फोन या मैसेज नहीं करते। विशेष रूप से जब हम यात्रा कर रहे हों। बोर्डिंग पर सूचित करें लैंडिग पर सूचित करें, अब आप कहां पहुंच गए हैं? कुछ संदेश हैं, जिन्हें मैं और मेरी बहन अनदेखा नहीं कर सकते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि वह हमारी निजी •ादिगी का अतिक्रमण करते है। इसके विपरीत, मजबूत व्यक्तिगत विचार होने के बावजूद, वह हमेशा हमें वह कुछ भी करने की स्वतंत्रता देते है जो हम करना चाहते हैं। बाहर जब उनके बच्चे कोई निर्णय लेते हैं, तो वह अपने विचारों के बावजूद पूर्ण समर्थन के साथ सामने आते हैं व संभवत:, यही कारण है कि मैं उनके साथ किसी विचार को साझा करने में संकोच नहीं करता।

गौरव वर्मा, एडवोकेट, वर्मा नगर एटा आज भी याद है पिता का अनुशासन और फटकार

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मुझे गर्व है कि मैं शिक्षक माता-पिता की संतान हूं। मेरे पिता अनुशासन प्रिय थे। लापरवाही, गैर-जिम्मेदारी और गलत बात उनको कतई बर्दाश्त नहीं थी। यदि यूं कहें कि किसी भी कीमत पर इसे वह बर्दाश्त नहीं करते थे तो गलत नहीं होगा। जीवन में कई बार ऐसे मौके आये जब मैने कुछ गलत किया और कभी-कभी तो किसी के झूठी शिकायत करने पर मेरी जमकर धुनाई भी हुई, लेकिन असलियत मालूम पड़ने पर उन्हें बेहद अफसोस हुआ। उनका कहना था कि जिदगी के हर मोड़ पर खुद को काबू में रखो। जिदगी में कितने भी बड़े हो जाओ, कितनी भी बड़ी समस्या आये, विचलित न हो, शांत रहो और गंभीरता से सोचो, हर समस्या का समाधान हो जायेगा। उनका मेरे व्यक्तित्व पर कितना असर हुआ, यह कहना बहुत ही मुश्किल है, लेकिन यह सच है कि आज मैं जो कुछ भी हूं, वह उन्हीं की कृपा, स्नेह और डांट-डपट का परिणाम है। जिनके पिता हैं, वह उनको बोझ न समझें, उनसे प्यार करें, उनका सम्मान करें।

ज्ञानेंद्र रावत, पर्यावरणविद एटा पापा ने हमेशा सिखाया खुश रहना

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मंजिल दूर है और सफर बहुत है, छोटी सी जिदगी की फिक्र बहुत है। मार डालती यह दुनिया कब की हमें, लेकिन पिता के प्यार का असर बहुत है। अपने पापा को लेकर मेरी कुछ ऐसी ही अनुभूति है। मेरे पिता संजय कश्यप ने मुझे कभी उदास न रहते हुए किसी भी परिस्थितियों में खुश रहना सिखाया है। वह ऐसे इंसान हैं जिन्होंने मुझे हमेशा हौसला दिया कि चाहे कितनी भी ऊंचाइयां क्यों न हो हंसते-हंसते उनको छुआ जा सकता है। वह हमेशा यह भी कहते हैं कि खुद ऊंचाइयों पर पहुंचने के बाद घमंड भी नहीं करना चाहिए। अन्यथा ऊंचाइयों तक पहुंचने का कोई मतलब नहीं। हमेशा इंसान अपने स्वभाव व्यवहार से ऊंचा बनता है न कि धन दौलत और रुतबे से। मेरे पापा दुनिया में सबसे अच्छे पापा हैं वह हमेशा विपरीत परिस्थितियों में मेरे साथ परछाई की तरह रहते हैं। खुद पर भरोसा रखना कि उनकी सीख भुला न सकूंगी। मुझे एक अच्छा इंसान बनाने के लिए उनका शुक्रिया।

स्वेच्छा कश्यप, एटा


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