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सांसों की मजबूरियां फिर भी हरियाली से दूरियां

हर सांस के लिए पेड़ से मिलने वाली ऑक्सीजन की जरूरत है। फिर भी जनम

By JagranEdited By: Published: Thu, 02 Jul 2020 10:21 PM (IST)Updated: Fri, 03 Jul 2020 06:07 AM (IST)
सांसों की मजबूरियां फिर भी हरियाली से दूरियां
सांसों की मजबूरियां फिर भी हरियाली से दूरियां

एटा, जागरण संवाददाता : हर सांस के लिए पेड़ से मिलने वाली ऑक्सीजन की जरूरत है। फिर भी जनमानस पौधे लगाने से दूरियां बनाए हुए हैं। स्थानीय स्तर पर सर्वे में यह बात साफ हुई है कि 30 फीसद लोगों ने कभी एक पौधा नहीं लगाया। इससे भी ज्यादा लोग ऐसे हैं जिन्होंने पौधे तो लगाए लेकिन उन्हें वृक्ष बनते नहीं देखा। ऐसी स्थिति से साफ है कि हरियाली बढ़ाने के मामले में लोगों की अरुचि सांसों के लिए परेशानियां न बढ़ा दे।

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अभियान के तहत विभिन्न वर्गों के लोगों पर पौधरोपण करने की स्थिति परखी गई। तो साफ हुआ कि एक बड़ा तबका हे जोकि पेड़ों से विभिन्न लाभ होने के बावजूद एक भी पौधा न लगा सका। 200 लोगों के सर्वे में सामने आया है कि पौधे लगाने में विद्यार्थी तथा शिक्षक अग्रणी है। अधिवक्ता तथा प्रबुद्ध तबके के लोग भी पौधरोपण में रुचि लेते हैं। सबसे ज्यादा खराब स्थिति पौधे लगाने के मामले में व्यापारी तथा व्यावसायिक क्षेत्र से जुड़े लोगों की है। किसान भी हरियाली में सहायक है। वहीं महिलाओं में चाहे घरेलू पौधरोपण को लेकर जागरूकता हो लेकिन उनकी सहभागिता भी संतोषजनक है। सर्वे में 30 फीसद लोग ऐसे मिले जिनका कहना था कि उन्होंने कभी पौधा नहीं लगाया। 34 फीसद ने बताया कि पौधा लगाने के बाद उन्हें नहीं मालूम कि जीवित रहा या संरक्षण बिना अस्तित्व खो गया। उम्र के मामले में देखा जाए तो सर्वे की खास बात यह रही कि शहरी क्षेत्र की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों के लोग ज्यादा पौधे लगाने में रुचि लेते हैं। आयु वर्ग के अनुरूप पौधरोपण न करने वालों की स्थिति

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7-15 वर्ष - 32 फ़ीसद

16-20 वर्ष -21 फीसद

21-40 वर्ष -23 फीसद

41-60 वर्ष -16 फीसद

61 से ऊपर -07 फीसद नकदी के लिए पेड़ों पर चली आरी

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जलेसर के गांव समसपुर निवासी वेदपाल ऐसे व्यक्ति हैं,जिन्होंने पूर्वजों द्वारा लगाए 15 बीघा के बाग को बच्चों की शादी और अपनी बीमारी के निदान के लिए कटवा कर लकड़ी बेची। वहीं ग्राम सुजातगंज अलीगंज के अलीशेर भी ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने पूर्वजों के खेतों पर शाम को लगाए गए दो दर्जन आम के पेड़ों को कटवाया नहीं लेकिन हर साल उनसे 50000 की आमदनी हो जाती है। यह सब जानने के बाद भी कभी वृक्ष बनने के लिए पौधे लगाने का प्रयास नहीं किया। बेटी के जन्म लेते ही लगवाते थे 10 पौधे

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कसूलिया गांव के ब्रह्मानंद गुप्ता पुरानी यादें ताजा करते हुए बताते हैं कि उनके बाबा गांव में अपने या किसी परिचित के घर में कन्या जन्म लेते 10 आम, शीशम या अच्छा लाभ देने वाले पौधे लगवा देते थे। यह भी कहते कि बेटी की शादी में दिक्कत हो तो उनसे नकदी की जुगत कर लेना और उसी समय 10 पौधे और लगा देना। ------

ग्राम दहेलिया निवासी अखिलेश तिवारी बताते हैं कि गांव में उस समय के बुजुर्ग पेड़ों की रक्षा के लिए बच्चों को इकट्ठा कर पानी लगवाते थे और इसके बाद गुड़ चना खिलाते थे। सिखाते भी थे कि पेड़ों में भगवान होते हैं इसलिए उन्हें पानी देना फर्ज सभी का है। जिस घर में पेड़ होता है वहां गरीबी नहीं रहती।


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