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जूट का थैला तैयार कर समूह की महिलाएं हो रहीं आत्मनिर्भर

जूट की रंगाई करने के बाद अलग-अलग डिजायन से वह थैला बनाती हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 06 Jul 2022 01:06 AM (IST)Updated: Wed, 06 Jul 2022 01:06 AM (IST)
जूट का थैला तैयार कर समूह की महिलाएं हो रहीं आत्मनिर्भर

जूट का थैला तैयार कर समूह की महिलाएं हो रहीं आत्मनिर्भर

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देवरिया: स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के हाथों बनाए गए जूट के थैले लोगों को पसंद आ रहा है। जूट के बुने आकर्षक हैंडबैग को खरीदने के लिए महिलाओं व छात्राओं में भी उत्साह है। वंदना मिश्रा लगभग डेढ़ वर्ष से जूट से उत्पाद बना रही है। अभी तक वह डेढ़ सौ महिलाओं को इसका प्रशिक्षण भी दे चुकी हैं। प्रशिक्षण लेने के बाद ये महिलाएं भी अच्छी आमदनी कर रही हैं।

देवरिया तहसील क्षेत्र के टीलाटाली की रहने वाली वंदना मिश्रा डेढ़ वर्ष ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ी और स्वयं सहायता समूह का गठन किया। समूह से उन्हें 30 हजार रुपये मिले और उन्होंने सिलाई मशीन की खरीदारी की। इसके बाद उन्होंने जूट से थैला व अन्य सामान बनाने का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद वह महुआडीह चौराहे पर एक किराये का कमरा लेकर उसमें जूट व कपड़े का थैला बनाने लगी।

जूट का बैग बना रोजगार का जरिया

जूट की रंगाई करने के बाद अलग-अलग डिजायन से वह थैला बनाती हैं। वह जूट से थैला, बैग बनाती है। उनके समूह की 11 महिलाएं भी उनके इस कार्य में हाथ बढ़ाती हैं। उनका कहना है कि 30 रुपये से लेकर 500 तक की वह थैला बना देती है। उनके थैले की बहुत डिमांड है। वह कई बार एनआरएलएम की तरफ से कई जगहों पर लगे मेले में भी अपना सामान लगाई, उनके सामानों को हर कोई पसंद करता है।

महिलाओं को भी दिया प्रशिक्षण

वंदना का कहना है कि स्वयं सहायता समूह से जुड़े होने के चलते अधिकारियों का अच्छा सपोर्ट रहता है। बैग के साथ ही कपड़ा की भी वह सिलाई करती हैं। अभी तक वह डेढ़ सौ से अधिक महिलाओं व लड़कियों को प्रशिक्षण भी दे चुकी हैं। यह महिलाएं भी प्रशिक्षण पाने के बाद विभिन्न जगहों पर अपना व्यवसाय कर रही हैं। खास बात यह है कि प्रशिक्षण लेने वाली महिलाओं से यह प्रशिक्षण का पैसा नहीं मांगती है। अगर कोई दे दिया तो ठीक नहीं, वह मांगती नहीं है।

बीस लड़कियां ले रहीं प्रशिक्षण

वंदना का कहना है कि उनके पास इन दिनों 20 लड़कियां प्रशिक्षण ले रही हैं। उसमें से वह किसी से फीस नहीं लेती। उनका कहना है कि इन किशोरियों को प्रशिक्षण देती हैं, वह उनके कार्य में हाथ बढ़ाती हैं।

दुकानों पर भेजती हैं झोला

इन दिनों सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लग गया है, इसलिए उनके इस थैले की मांग ज्यादा बढ़ गई है। उनका कहना है कि उन्हें अपना झोला बेचने नहीं जाना पड़ता, दुकानदार आकर खुद ही झोला खरीद कर ले जाते हैं। पहले उनके झोले आनलाइन भी बिक्री हो जाते थे।

स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है। रामपुर कारखाना, देसही देवरिया, गौरीबाजार व बैतालपुर की महिलाओं को जूट व कपड़े के बैग व झोला बनाने का प्रशिक्षण दिया गया है। कई महिलाएं इस क्षेत्र में कार्य कर रही हैं। खुद के साथ ही दूसरों को भी स्वावलंबी बना रही है। वंदना को जल्द ही पुरस्कृत किया जाएगा।

विजय शंकर राय, उपायुक्त, एनआरएलएम


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