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जलाएं होलिका, पर्यावरण संरक्षण का लें संकल्प

प्रेम सौहार्द व आपसी भाईचारे की डोर को मजबूत करने वाले त्योहार होली की तैयारियां शहर से लेकर गांवों में जोरों पर है। होली त्योहार के एक दिन पूर्व होलिका जलाने की परंपरा है। हम होलिका जलाते समय हरियाली के शत्रु बन बैठते हैं और वह करते हैं जो हमें नहीं करना चाहिए। पर्यावरण को संरक्षित करने का संकल्प लेना चाहिए। आइए हरे पेड़ों को न काटने व न जलाने का शपथ लें।

By JagranEdited By: Published: Sat, 16 Mar 2019 11:36 PM (IST)Updated: Sat, 16 Mar 2019 11:36 PM (IST)
जलाएं होलिका, पर्यावरण संरक्षण का लें संकल्प
जलाएं होलिका, पर्यावरण संरक्षण का लें संकल्प

देवरिया: प्रेम सौहार्द व आपसी भाईचारे की डोर को मजबूत करने वाले त्योहार होली की तैयारियां शहर से लेकर गांवों में जोरों पर है। होली त्योहार के एक दिन पूर्व होलिका जलाने की परंपरा है। हम होलिका जलाते समय हरियाली के शत्रु बन बैठते हैं और वह करते हैं, जो हमें नहीं करना चाहिए। पर्यावरण को संरक्षित करने का संकल्प लेना चाहिए। आइए हरे पेड़ों को न काटने व न जलाने का शपथ लें।

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20 मार्च की रात नौ बजे के बाद होलिका जलेगी और 21 मार्च को होली का त्योहार मनाया जाएगा। होलिका जलाते समय हरे पेड़ों के अलावा, टायर ट्यूब आदि जलाते हैं, जिससे निकलने वाली विषैली गैस वातावरण में घुल कर हमारे शरीर व स्वास्थ्य को काफी नुकसान पहुंचाती है। होलिका में हरे पेड़ों को जलाने का विरोध हमारे शास्त्र भी करते हैं और पूर्णतया र्विजत करते हैं।

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होलिका दहन का वैज्ञानिक कारण

होलिका दहन का मूल यह है कि हम जो जलाते हैं उससे पर्यावरण की शुद्धि हो तथा रोगकारक जीवाणु आग में जलकर स्वत: नष्ट हो जाएं, जो धुआं उठे उससे हमारा पर्यावरण शुद्ध हो। शास्त्रीय होलिका दहन से हवा से अस्थमा, प्लीहा, यकृत, हृदय आदि रोगों से बचाव होता है। नववर्ष के आगमन की प्रतीक्षा में ये विधा अनुसंधेय है।

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होलिका दहन में गोबर का गोईठा, सरसों का सूखा डंठल, वसंत ऋतु में पतझड़ के पत्ते, पकी हुई तीसी, अलसी, सूखी लकड़ी, सरसों का अबटन, कपूर, छोटी इलाइची का प्रयोग करना चाहिए। इसे ही शास्त्रीय सनातन धर्म के अनुकूल होलिका दहन करना कहते हैं। हमें कदापि हरे पेड़, पौधों, रासायनिक पदार्थों व टायर ट्यूब नहीं जलाना चाहिए। इससे पर्यावरण को खतरा है। यह सभी मानव का धर्म है कि पर्यावरण को संरक्षित करें।

-स्वामी राजनारायणाचार्य, पीठाधीश्वर, बाला जी मंदिर, कसया रोड देवरिया

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हमारे यहां भारत वर्ष में इस दिन काष्ठ का संग्रह व गाय के शुद्ध उपलि से होलिका दहन का विधान बताया गया है। हरे वृक्षों को काटना व होलिका में प्रयोग करना किसी भी ²ष्टिकोण से सही नहीं है। प्रकृति की रक्षा करना ही धर्म की रक्षा करने की वास्तविक परिभाषा है। होलिका दहन का मूल भूत उद्देश्य जीव के अंदर सभी प्रकार के पापों का सत्य पथ पर विसर्जन करना है।

-श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर राघवेंद्र दास जी महराज पीठाधीश्वर, पैकौली कुटी, देवरिया

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