वर्षा जल संचयन की थाती है 200 वर्ष पुराना शिव मंदिर का पोखरा
भलुअनी कस्बा स्थित शिव मंदिर दुर्गा मंदिर परिसर स्थित पोखरा के बारे में दिनेश गुप्त बताते हैं कि बड़कागांव निवासी छेदी साहू ने करीब दो सौ वर्ष पूर्व जल संरक्षण स्नान ध्यान के लिए शिव मंदिर के साथ पोखरे का निर्माण कराए थे। पोखरा मिट्टी से भरने की कगार पर था तब पांच दशक पूर्व ज्ञान प्रकाश इंटर कालेज के छात्रों ने इसकी मिट्टी निकाल साफ-सफाई की।
देवरिया: भलुअनी कस्बा शिव मंदिर स्थित दो सौ वर्ष पुराना पोखरा वर्षा जल संचयन की थाती है। प्रचंड गर्मी में बेजुबानों को सहारा दे रहा है। पशु-पक्षी यहां प्यास बुझाते हैं। विशाल मंदिर परिसर में आने वाले श्रद्धालु आचमन करते हैं। एक एकड़ क्षेत्रफल वाले इस पोखरे में बारिश का पानी संरक्षित होता है। पोखरे में जल जीव, मछलियां संरक्षित हैं। लोग उन्हें दाना खिलाते हैं।
भलुअनी कस्बा स्थित शिव मंदिर, दुर्गा मंदिर परिसर स्थित पोखरा के बारे में दिनेश गुप्त बताते हैं कि बड़कागांव निवासी छेदी साहू ने करीब दो सौ वर्ष पूर्व जल संरक्षण , स्नान, ध्यान के लिए शिव मंदिर के साथ पोखरे का निर्माण कराए थे। पोखरा मिट्टी से भरने की कगार पर था तब पांच दशक पूर्व ज्ञान प्रकाश इंटर कालेज के छात्रों ने इसकी मिट्टी निकाल साफ-सफाई की। दिनेश सिंह, श्रीनारायण वर्मा,अजय श्रीवास्तव, संतोष मद्धेशिया, दुर्गेश कान्दू बताते हैं कि दैनिक जागरण के सहेज लो हर बूंद अभियान से प्रेरित होकर हम सभी गांव के लोग पोखरे की हर वर्ष श्रमदान कर साफ सफाई करते हैं। जिससे वर्षा का संग्रह जल स्वच्छ रहता है। बरसात के मौसम में पोखरा पूरी तरह पानी से भर जाता है। इससे आसपास का भू-गर्भ जल स्तर नीचे नहीं गिरने पाता है।
वर्षा जल संचयन को मिले प्रोत्साहन
बीआरडी बीडी पीजी कालेज के भूगोल विभाग के विभागाध्यक्ष डा.ओम प्रकाश शुक्ल ने कहा कि रेन हार्वेस्टिग वर्षा जल को किसी खास माध्यम से संचय करने या इकट्ठा करने की प्रक्रिया को कहा जाता है। विश्व भर में पेयजल की कमी एक संकट बनती जा रही है। इसका कारण पृथ्वी के जलस्तर का लगातार नीचे जाना भी है। वर्षा जल जो बह जाता है, उसका संचयन किया जाना आवश्यक है। ऐसे होता है जल संचयन
वर्षा जल संचयन में घर की छतों, स्थानीय कार्यालयों की छतों या फिर विशेष रूप से बनाए गए क्षेत्र से वर्षा का पानी एकत्रित किया जाता है। इसमें दो तरह के गड्ढे बनाए जाते हैं। एक गड्ढा जिसमें दैनिक प्रयोग के लिए जल संचय किया जाता है और दूसरे का सिचाई के काम में प्रयोग किया जाता है। दैनिक प्रयोग के लिए पक्के गड्ढे को सीमेंट व ईंट से निर्माण करते हैं। इसकी गहराई सात से दस फीट व लंबाई और चौड़ाई लगभग चार फीट होती है। इन गड्ढों को नालियों (पाइप) द्वारा छत की नालियों और टोटियों से जोड़ दिया जाता है, जिससे वर्षा का जल सीधे इन गड्ढों में पहुंच सके। दूसरे गड्ढे को ऐसे ही (कच्चा) रखा जाता है। इसके जल से खेतों की सिचाई की जाती है। घरों की छत से जमा किए गए पानी को तुरंत ही प्रयोग में लाया जा सकता है।