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पौष्टिकता से भरपूर कोदो-कुटकी की खेती बनेगी गरीब का सहारा

जागरण संवाददाता चित्रकूट भारत में कृषि के लिहाज से और स्वास्थ्य के हिसाब से मोटे अनाज सदै

By JagranEdited By: Published: Mon, 27 Sep 2021 06:54 PM (IST)Updated: Mon, 27 Sep 2021 06:54 PM (IST)
पौष्टिकता से भरपूर कोदो-कुटकी की खेती बनेगी गरीब का सहारा

जागरण संवाददाता, चित्रकूट: भारत में कृषि के लिहाज से और स्वास्थ्य के हिसाब से मोटे अनाज सदैव से ही उपयोगी रहे हैं। मोटे अनाज को फिर से चलन में लाने के लिए दीनदयाल शोध संस्थान अपने कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से किसानों में जन जागरूकता के लिए विशेष अभियान चला रहा है। किसानों में एक बार फिर से मोटे अनाजों के प्रति रुझान बढ़े, इसके लिए खासा रुचि दिखा रहे हैं।

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जनपद के ग्राम बंदरकोल में विभिन्न किस्मों के मोटे अनाजों की फसलों का प्रदर्शन तैयार है। कम समय, कम खर्चा, कम पानी एवं पोषक तत्वों से परिपूर्ण यह फसलें गरीब किसानों के लिए प्रेरणा का केंद्र बनीं है। जिनको देखने किसान पहुंच रहे हैं।

डीआरआइ के संगठन सचिव अभय महाजन कहते हैं कि मोटे अनाज में गिना जाने वाला कोदो कुटकी आज उपेक्षित अनाज में शामिल हो गया है। कम लागत में अधिक उपज पाने की लालसा में भले ही किसान धान, गेहूं व अन्य अनाज की खेती करने में पसंद दिखा रहे लेकिन कोदो की पौष्टिकता के बारे में जब आपको जानकारी मिलेगी तो स्वत: इसके प्रति झुकाव होगा। इसके दाने काफी लाभदायक है। पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन की उपलब्धता वाले इस अन्न में पौष्टिकता की खान होती है। यानि यह सुपोषण के लिए सबसे बढिया अन्न है। कृषि विशेषज्ञ सत्यम चौरिहा ने बताया कि ये फसलें गरीब एवं आदिवासी क्षेत्रों में उस समय लगाई जाने वाली खाद्यान फसलें हैं जिस समय पर उनके पास किसी प्रकार अनाज खाने को उपलब्ध नहीं हो पाता है। ये फसलें सितंबर में पककर तैयार हो जाती है जबकि अन्य खाद्यान्न फसलें इस समय पर नही पक पाती और बाजार में खाद्यान का मूल्य बढ़ जाने से गरीब किसान उन्हें नही खरीद पाते हैं। अत: इस समय 60-80 दिनों में पकने वाली कोदो-कुटकी, सावां,एवं कंगनी जैसी फसलें महत्वपूर्ण खाद्यानों के रूप में प्राप्त होती है। पौष्टिकता से भरपूर कोदो की खेती वैसे तो कम किसान करते हैं लेकिन बुंदेलखंड के कई प्रगतिशील किसान ऐसे हैं जो कोदो एवं कुटकी की खेती करते हैं।


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