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नाना जी के प्रयास से मिली थी चित्रकूट को दिशा

हेमराज कश्यप चित्रकूट चित्रकूट को नई दिशा देने वाले राष्ट्र ऋषि नानाजी देशमुख को आज मर

By JagranEdited By: Published: Wed, 07 Aug 2019 10:47 PM (IST)Updated: Fri, 09 Aug 2019 06:18 AM (IST)
नाना जी के प्रयास से मिली थी चित्रकूट को दिशा
नाना जी के प्रयास से मिली थी चित्रकूट को दिशा

हेमराज कश्यप, चित्रकूट : चित्रकूट को नई दिशा देने वाले राष्ट्र ऋषि नानाजी देशमुख को आज मरणोपरांत भारत रत्‍‌न से नवाजा जाएगा। भले ही वह आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन इस सम्मान से उनके साथ काम करने वालों का सीना गर्व से चौड़ा हो गया है। नाना जी ने अपने प्रयासों से ही चित्रकूट के करीब पांच सौ गांवों का उद्धार कर देश-दुनिया के सामने विकास का मॉडल प्रस्तुत किया था। उनके द्वारा स्थापित दीन दयाल शोध संस्थान में आज भी लोग ग्रामोदय का पाठ सीखने आते हैं।

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नानाजी ने वर्ष 1972 में दीन दयाल शोध संस्थान (डीआरआइ) की स्थापना मध्यप्रदेश के सतना जिले में आने वाले चित्रकूट के क्षेत्र में की थी। पंडित दीन दयाल उपाध्याय के विचारों पर आधारित इस संस्था ने कई कीर्तिमान स्थापित किए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए डीआरआइ में प्रवास कर नानाजी के स्वावलंबन की बानगी देख चुके हैं। डीआरआइ संगठन सचिव अभय महाजन कहते हैं कि नानाजी के गांव विकास का मॉडल आदर्श ग्राम से कम नहीं है। ऐसे समग्र ग्राम बनाने में समाज शिल्पी दंपती का बड़ा हाथ है, जिन्हें नाना जी ने खुद नियुक्त किया था।

देश-दुनिया में मिली ख्याति

प्रदेश के गोंडा जिले के जय प्रभा गांव में नानाजी ने ग्राम्य विकास का पहला बीज बोया था लेकिन वह चित्रकूट में अंकुरित होकर वट वृक्ष बनने के साथ बिहार, मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र के कई गांवों तक पहुंचा। इसके तहत नानाजी गांव के लोगों की शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन सहित अन्य सामाजिक गतिविधियों ओर विकास पर जोर देते थे।

समाजसेवा के लिए राजनीतिक जीवन से लिया संन्यास

नानाजी ने करीब 60 वर्ष की उम्र में राजनीतिक जीवन से संन्यास लिया था और समाजसेवा में जुट गए थे। वर्ष 1960 में वह पहली बार चित्रकूट आए और यहीं बस गए। नानाजी ने अपने मृत शरीर को मेडिकल शोध के लिए दान करने का वसीयतनामा निधन से काफी पहले वर्ष 1997 में लिखकर दे दिया था। उन्होंने मंथन (आत्म निरीक्षण) पत्रिका का प्रकाशन भी किया। इसके साथ गोंडा (यूपी) और बीड (महाराष्ट्र) में तमाम सामाजिक कार्यों को अंजाम तक पहुंचाया। उनकी परियोजना का आदर्श वाक्य था Þहर हाथ को देंगे काम, हर खेत को देंगे पानी'। इस पर अमल भी हुआ।


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