Move to Jagran APP

हरी सब्जियों की खेती की ओर अन्नदाताओं का रुझान

धान के कटोरे में हरी सब्जियों की खेती की ओर किसानों का रुझान तेजी से बढ़ा है। कम लागत में बेहतर उत्पादन कर किसान आर्थिक रूप से समृद्ध हो रहे हैं। चालू सीजन में मुजफ्फरपुर गांव निवासी प्रगतिशील किसान चंदन साव ने चार हेक्टेयर भूमि में फूल गोभी की खेती की है। बताया कि धान व गेहूं की पैदावार करने के बजाय सब्जियों की खेती करना लाभप्रद है। कम लागत में बेहतर उत्पादन कर किसान वर्ष भर में चौगुना

By JagranEdited By: Published: Fri, 29 Nov 2019 07:54 PM (IST)Updated: Sat, 30 Nov 2019 06:04 AM (IST)
हरी सब्जियों की खेती की ओर अन्नदाताओं का रुझान
हरी सब्जियों की खेती की ओर अन्नदाताओं का रुझान

जासं, चकिया (चंदौली) : धान के कटोरे में हरी सब्जियों की खेती की ओर किसानों का रुझान तेजी से बढ़ा है। कम लागत में बेहतर उत्पादन कर किसान आर्थिक रूप से समृद्ध हो रहे हैं। चालू सीजन में मुजफ्फरपुर गांव निवासी प्रगतिशील किसान चंदन साव ने चार हेक्टेयर भूमि में फूल गोभी की खेती की है।

loksabha election banner

बताया कि धान व गेहूं की पैदावार करने के बजाय सब्जियों की खेती करना लाभप्रद है। कम लागत में बेहतर उत्पादन कर किसान वर्ष भर में चौगुना आय अर्जित कर सकते हैं। कहा फूल गोभी की खेती हर प्रकार की भूमि में की जा सकती है। हालांकि जल निकास वाली दोमट या बलुई दोमट भूमि जिसमें जीवांश की प्रचुर मात्रा उपलब्ध हो, काफी उपयुक्त है। इसकी खेती के लिए अच्छी तरह से खेत को तैयार करना चाहिए। इसके लिए खेत को तीन से चार बार जोताई करके पाटा मारकर समतल कर लेना चाहिए। गोबर की खाद या कंपोस्ट रोपाई के तीन चार सप्ताह पूर्व अच्छी तरह मिला देना चाहिए। इसके अतिरिक्त 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस व 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए। बीजदर, बोआई की विधि

फूल गोभी के बीज को पहले पौधशाला में बोआई करके पौधा तैयार करते हैं । एक हेक्टेयर में प्रति रोपण के लिए लगभग 75-100 वर्ग मीटर में पौध उगाना पर्याप्त होता है। पौधों की वृद्धि के लिए मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में नमी का होना अत्यंत आवश्यक है। 10-15 दिनों के अंतराल पर आवश्यकतानुसार सिचाई करते रहना चाहिए। गोभी में फूल तैयार होने तक दो-तीन निराई-गोड़ाई कर खरपतवार पर नियंत्रण करना जरूरी होता है। रोग से बचाव

फूल गोभी में गलन रोग, काला विगलन, पर्णचित्ती, पत्ती का धब्बा रोग व मृदु रोमिल आसिता रोग लगते हैं। यह फफूंदी के कारण होता है। रोग पौधा से फूल बनने तक कभी भी लग सकता है। पत्तियों के ऊपरी सतह पर भूरे धब्बे बनते हैं। बचाव के लिए रोपाई के समय कीटनाशक का छिड़काव करें।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.