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आठ माह में अस्पतालों में भेजा मात्र 95 वायल एंटी स्नेक वेनम

आकांक्षात्मक जनपद में अधिकांश सीएचसी और पीएचसी पर एंटी स्नेक वेनम का टोटा है। स्वास्थ्य महकमे की आपूर्ति रिपोर्ट इसकी पुष्टि करती है। गत आठ माह में मुख्यालय स्थित दवा स्टोर से विभिन्न अस्पतालों में मात्र 95 वायल दवा ही भेजी गई। इसके बाद कोई आपूर्ति नहीं हुई।

By JagranEdited By: Published: Thu, 28 Nov 2019 09:36 PM (IST)Updated: Fri, 29 Nov 2019 12:40 AM (IST)
आठ माह में अस्पतालों में भेजा मात्र 95 वायल एंटी स्नेक वेनम
आठ माह में अस्पतालों में भेजा मात्र 95 वायल एंटी स्नेक वेनम

जागरण संवाददाता, चंदौली : आकांक्षात्मक जनपद में अधिकतर सीएचसी और पीएचसी पर एंटी स्नेक वेनम का टोटा है। स्वास्थ्य महकमे की आपूर्ति रिपोर्ट इसकी पुष्टि करती है। गत आठ माह में मुख्यालय स्थित दवा स्टोर से विभिन्न अस्पतालों में मात्र 95 वायल दवा ही भेजी गई। इसके बाद कोई आपूर्ति नहीं हुई, जबकि हर माह अस्पतालों में सर्पदंश के करीब दर्जन भर मरीज आते हैं। लेकिन पीएचसी व सीएचसी में दवा उपलब्ध न होने पर खाली हाथ लौटना पड़ता है। स्वास्थ्य महकमे की लापरवाही पीड़ितों की जान के लिए खतरनाक साबित होती है।

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वन और पर्वतीय क्षेत्र से आच्छादित कृषि प्रधान जनपद में सर्पदंश के मामले अक्सर सामने आते हैं। अधिकतर ग्रामीण इलाकों में सर्पदंश की घटनाएं होती हैं। लेकिन स्वास्थ्य महकमा इस चुनौती से निबटने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है। जिले के नक्सल प्रभावित नौगढ़ समेत सुदूर इलाके में स्थित अस्पतालों में एंटी स्नेक वेनम का टोटा है। कारण अप्रैल से लेकर नवंबर तक अस्पतालों में मात्र 95 वायल दवा ही भेजी गई। अप्रैल माह में पीडीडीयू नगर स्थित पीपी सेंटर में पांच, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र शहाबगंज में 10, नियामताबाद पीएचसी में 40, चहनियां में पांच, नौगढ़ में 30 और सदर पीएचसी में पांच वायल एंटी स्नेक वेनम भेजा गया। मुख्यालय स्थित स्टोर में फिलहाल 86 वायल दवा उपलब्ध है। जबकि जिला अस्पताल में 70 वायल दवा मौजूद है। स्टोर इंचार्ज आरके यादव की मानें तो सामान्य स्थिति में इतनी मात्रा पर्याप्त है। लेकिन यदि एक साथ सर्पदंश के तीन-चार गंभीर पीड़ित अस्पताल पहुंच जाएं तो उनकी जान बचाना मुश्किल होगा। कारण सामान्य स्थिति में प्रत्येक पीड़ित को न्यूनतम पांच वायल दवा की जरूरत होती है, जबकि गंभीर रूप से पीड़ितों को चार-चार डोज तक लगाने पड़ते हैं। इसके बाद उनकी हालत में सुधार की गुंजाइश बनती है। जागरूकता का अभाव

गांवों में अभी भी सर्पदंश के इलाज को लेकर जागरूकता का अभाव है। ऐसे में सांप काटने के बाद लोग अस्पताल जाने की बजाए झाड़-फूंक कराने में विश्वास करते हैं। इसके चलते पीड़ितों की जान चली जाती है। यदि समय से अस्पताल पहुंच जाएं तो दवा-इलाज से पीड़ितों के ठीक होने की संभावना रहती है। ''अस्पतालों में एंटी स्नेक वेनम मौजूद हैं। डिमांड के अनुसार दवा की आपूर्ति की जाती है। सर्पदंश के बाद झाड़फूंक की बजाए अस्पतालों में ले जाना चाहिए। इससे जान बचने की संभावना बनी रहती है।''

-डा. आरके मिश्रा, सीएमओ।


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