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कोरोना काल में मरीजों के लिए देवदूत बने चिकित्सक

- कई डाक्टर पाजिटिव होने पर भी नहीं हारी हिम्मत ठीक होने पर की मरीजों की सेवा - लगाता

By JagranEdited By: Published: Wed, 30 Jun 2021 08:30 PM (IST)Updated: Wed, 30 Jun 2021 08:30 PM (IST)
कोरोना काल में मरीजों के लिए देवदूत बने चिकित्सक
कोरोना काल में मरीजों के लिए देवदूत बने चिकित्सक

- कई डाक्टर पाजिटिव होने पर भी नहीं हारी हिम्मत, ठीक होने पर की मरीजों की सेवा

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- लगातार 48-48 घंटे तक किया कामकाज

- दिन हो अथवा रात, मरीजों पर हमेशा रही नजर जागरण संवाददाता, चंदौली : चिकित्सक जिदगी और मौत के बीच जूझ रहे लोगों का न सिर्फ इलाज करते हैं, बल्कि उन्हें नया जीवन भी प्रदान करते हैं। इसलिए डाक्टरों को धरती का भगवान कहा जाता है। वहीं लोगों का भरोसा आज भी चिकित्सकों पर कायम है। जिला अस्पताल के चिकित्सक डाक्टर संजय कुमार, एसीएमओ डाक्टर डीके सिंह, एसीएमओ डाक्टर नीलम ओझा, धानापुर सीएचसी में तैनात डाक्टर जेपी गुप्ता, चकिया संयुक्त अस्पताल के डाक्टर अशोक सिंह, डाक्टर आरएन यादव, डाक्टर विवेक सिंह, डाक्टर निशांत उपाध्याय, पीएचसी चकिया के डाक्टर सुजीत सिंह, डाक्टर एचडी मौर्य आदि इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। कोरोना काल में मरीजों के लिए देवदूत साबित हुए। उन्होंने कोरोना मरीजों के इलाज के लिए एल-वन अस्पताल बनाए गए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में बिना पलक झपकाए लगातार 48-48 घंटे तक काम किया। दिन हो या रात मरीजों पर हमेशा उनकी नजर रही। डाक्टर गुप्ता 2007 में धानापुर सीएचसी में अधीक्षक के पद पर तैनात हुए। अस्पताल पर इलाके के लगभग दो लाख लोगों के इलाज की जिम्मेदारी है। डाक्टर गुप्ता ने अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए अधिक से अधिक लोगों तक चिकित्सा सुविधा पहुंचाने की कोशिश की। कोरोना की दूसरी लहर में अस्पताल में आक्सीजनयुक्त एल-वन वार्ड बनाया गया। यहां ओपीडी बंद कर कोरोना मरीजों को भर्ती किया जाने लगा। डाक्टर गुप्ता संक्रमितों का इलाज करते-करते खुद पाजीटिव हो गए। हालांकि स्वस्थ होने के बाद दोबारा मरीजों की सेवा में पूरी ऊर्जा और उत्साह के साथ जुट गए। कोरोना मरीजों का इलाज करने के साथ ही उनके परिजनों से बात कर सावधानी बरतने के लिए जागरूक, आमजन को कोविड प्रोटोकाल के पालन के लिए प्रेरित करना उनकी दिनचर्या में शामिल हो गया था। दूसरी लहर के दौरान गांवों में शिविर लगाकर 21 हजार लोगों की एंटीजन जांच कराई। इसमें 18 हजार की रिपोर्ट पाजीटिव आई थी। ऐसे में अस्पताल पर एकाएक दबाव बढ़ गया था। हालांकि अधीक्षक ने चुनौतियों से हार नहीं मानी। अस्पताल में भर्ती मरीजों के स्वास्थ्य पर हमेशा उनकी नजर रही। आक्सीजन खत्म होने से पहले ही सिलेंडर बदलवाने से लेकर हर छोटी से बड़ी जरूरतों का ध्यान रखते रहे।


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