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गंगा में लगाई डुबकी, चखा गन्ने का स्वाद

जागरण संवाददाता चंदौली कार्तिक मास की प्रबोधिनी एकादशी पर्व पर मंगलवार को श्रद्धालुओं ने जह

By JagranEdited By: Published: Wed, 25 Nov 2020 05:32 PM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2020 05:32 PM (IST)
गंगा में लगाई डुबकी, चखा गन्ने का स्वाद
गंगा में लगाई डुबकी, चखा गन्ने का स्वाद

जागरण संवाददाता, चंदौली : कार्तिक मास की प्रबोधिनी एकादशी पर्व पर मंगलवार को श्रद्धालुओं ने जहां गंगा स्नान कर पुण्य का लाभ कमाया, वहीं गन्ने का स्वाद चख परंपरा का निर्वहन किया। चहनियां के बलुआ स्थित पश्चिम वाहिनी गंगा तट पर हजारों श्रद्धालुओं ने मां गंगा के आंचल में आस्था की डुबकी लगाई। बलुआ, टांडा, कांवर, तिरगावां, हसनपुर, नादी निधौरा, सहेपुर आदि गंगा तट पर स्नान दान का सिलसिला दोपहर बाद तक जारी रहा। सुबह से ही कस्बा बाजार में गन्ने की बिक्री ने जोर पकड़ लिया। श्रद्धावान महंगाई के बावजूद गन्ने की खरीदारी में जुटे रहे। एक ईख की बिक्री 20 से 25 रुपये में हुई। हालांकि दिन ढलने के साथ ही दुकानदार जो मिला, उसी दाम पर गन्ने की बिक्री कर चलते बने। सनातन धर्म परंपरा में कार्तिक मास में पड़ने वाली प्रबोधिनी एकादशी पर्व का विशेष महत्व है। इस दिन से शुभ लग्न का शुभारंभ होता है। भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना करने से इच्छित मनोकामना की पूर्ण होती है। एकादशी पर्व को लेकर घर परिवार में दो दिन पूर्व से ही तैयारी चल रही थी। मंगलवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालु वाराणसी स्थित गंगा घाट पर स्नान करने को रवाना हुए। लोगों ने व्रत रखकर स्नान करने के बाद बेसहारा लोगों को अन्न, वस्त्र का दान किया। कई घरों में तुलसी जी का विवाह भी विधि-विधान से पूजन-अर्चन कर किया गया। वहीं एकादशी पर्व पर गन्ना खाने की विशेष परंपरा है। ऐसे में गन्ने की खरीदारी को लोगों में होड़ लगी रही। स्थानीय बाजार में सुबह से ही सड़क के किनारे गन्ने का बाजार सज गया। सुबह के समय गन्ने की बिक्री पर महंगाई का असर देखने को मिला लेकिन ज्यों-ज्यों दिन चढ़ता गया। दुकानदार खपत को लेकर जो मिला उसी में बिक्री कर संतुष्ट होकर घर को चल दिए। गन्ने की कीमत ज्यादा होने का प्रमुख कारण यह भी रहा कि जनपद में गन्ने की खेती बड़े पैमाने पर नहीं होती। गिने चुने किसान ही गन्ने की खेती करते हैं।

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शालिग्राम व तुलसी का हुआ विवाह

एकादशी पर्व पर कुंआरी कन्याओं ने व्रत रखकर शालिग्राम व तुलसी का विवाह कराया। विवाह के बाबत एक दिन पूर्व से ही घरों में तैयारी का दौर जारी रहा। मंगलवार को देर शाम भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह संपन्न हुआ। विधिवत पूजा अर्चना की। तुलसी और शालिग्राम विवाह के बारे में कहा जाता है कि तुलसी ने भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दिया था इसलिए भगवान विष्णु को शालिग्राम बनना पड़ा। इस रूप में उन्होंने माता तुलसी जो लक्ष्मी का ही रूप मानी जाती हैं उनसे विवाह किया।


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