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कुटीर उद्योग बंद, कैसे हो गुजर-बसर

कुटीर उद्योग नहीं चलने के कारण गरीब मध्यमवर्गीय लोगों का गुजर बसर करना मुश्किल हो गया है।कभी क्षेत्र में साड़ी बुनाई के लिए सैकडों करघे चलते थे। बनारसी साड़ी सिल्क व कतान के कुर्ता का कपड़ा बनाया जाता था। यहां की बुनी हुई बनारसी साड़ी लोकप्रिय थी। बड़े व्यवसायियों द्वारा लूम लगा लेने से साड़ियां सस्ती बिकने लगी। इससे साड़ी व्यवसाय ठप हो गया। वहीं साबुन अगरबत्ती व बीड़ी बनाने के कई कारखाने संचालित थे जो पूरी तरह से बंद हो गए हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 16 Nov 2019 12:29 AM (IST)Updated: Sat, 16 Nov 2019 12:29 AM (IST)
कुटीर उद्योग बंद, कैसे हो गुजर-बसर
कुटीर उद्योग बंद, कैसे हो गुजर-बसर

जासं, बबुरी (चंदौली) : कुटीर उद्योग नहीं चलने के कारण गरीब, मध्यमवर्गीय लोगों का गुजर बसर करना मुश्किल हो गया है। कभी क्षेत्र में साड़ी बुनाई के लिए सैकडों करघे चलते थे। बनारसी साड़ी, सिल्क व कतान के कुर्ता का कपड़ा बनाया जाता था। यहां की बुनी हुई बनारसी साड़ी लोकप्रिय थी। बड़े व्यवसायियों द्वारा लूम लगा लेने से साड़ियां सस्ती बिकने लगी। इससे साड़ी व्यवसाय ठप हो गया। वहीं साबुन, अगरबत्ती व बीड़ी बनाने के कई कारखाने संचालित थे जो पूरी तरह से बंद हो गए हैं।

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कुटीर उद्योगों के बंद होने से हजारों लोग बदहाली का जीवन जीने को विवश हैं। आधुनिकता के चलते मशीन की बनी साड़ियों की मांग बढ़ने से हाथ की बनी हुई साड़ियों की कद्र ही समाप्त हो गई है। कभी सैकड़ों करघे चलते थे, अब महज 24 करघे बचे हैं। यहां की ननकु व ठाकुर बीड़ी की पूर्वाचल के साथ-साथ बिहार में बड़े पैमाने पर सप्लाई होती थी। पूरे देश में शायद बबुरी ही एक ऐसी जगह है जहां सिगरेट जैसी फिल्टर बीड़ी का निर्माण किया जाता था। समय के साथ मांग न होने के चलते बीड़ी बनाने का कार्य ठप पड़ गया। मोमबत्ती, अगरबत्ती व साबुन बनाने के कारखाने भी बंद हो गए। इससे क्षेत्र में बेरोजगारी फैली हुई है। रोजगार की तलाश में लोग देश के अन्य भागों में जाकर दूसरे धंधे में लग गए हैं। सरकार द्वारा कुटीर उद्योग को बढ़ावा मिलता तो यहां के नौजवानों को रोजगार के लिए दर दर भटकना न पड़ता।


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