यहां दोस्ती ही धर्म, मिलकर रहेंगे हम
म को लेकर तमाम व्याख्याएं दी गई है। लेकिन कस्बा ऊचांगांव निवासी दो दोस्तों की दोस्ती ही धर्म बनी हुई है। अलग-अलग समुदाय से तालुक रखने के बाद भी दोनों ने अपनी धार्मिक स्वतंत्रता को दोस्ती के नाम कर दिया है।
बुलंदशहर, जेएनएन। धर्म को लेकर तमाम व्याख्याएं दी गई है। लेकिन कस्बा ऊचांगांव निवासी दो दोस्तों की दोस्ती ही धर्म बनी हुई है। अलग-अलग समुदाय से तालुक रखने के बाद भी दोनों ने अपनी धार्मिक स्वतंत्रता को दोस्ती के नाम कर दिया है। दोनों एक-दूसरे के लिए एक-जिस्म और एक जान बने हुए हैं। हालात चाहे जो भी रहें हो, लेकिन दोनों ने कभी एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ा।
कस्बा ऊंचागांव के रहने वाले सुरजीत सिंह और मुस्ताक अहमद की दोस्ती तब हुई थी जब दोनों पहली बार स्कूल गए थे। कक्षा एक से शुरू हुई दोस्ती आज चार दशक बाद भी प्रेम और भाईचारे के साथ कायम हैं। दोनों एक दूसरे के त्योहारों में शामिल होने के साथ ही साथ मिलकर कारोबार भी कर रहे हैं। क्षेत्र में दोनों की दोस्ती की मिशाल अब गांव में भी दी जाती है। अलग-अलग समुदाय से होने के बाद भी दोनों एक-दूसरे की भावनाओं का पूरा सम्मान करते हैं और होने वाले धार्मिक आयोजनों में भी शामिल होते हैं। दोनों दोस्त मानते हैं ही धार्मिक स्वतंत्रता सभी के लिए है, लेकिन कुछ लोग इसकी अपनी तरीके से व्याख्या कर लेते हैं।
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नहीं छोड़ा एक-दूसरे का साथ
सुरजीत सिंह व मुस्ताक अहमद की दोस्ती बचपन से शुरू हुई और आज भी कायम है। दोनों दोस्त बताते हैं कि हमारी दोस्ती हर बात से ऊपर है। बढ़ती उम्र के साथ-साथ दोनों की दोस्ती ओर गहरी होती चली गई। अब दोनों 49 बसंत पूरे कर चुके हैं, लेकिन जज्बा अभी भी कायम है।
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क्रिकेट और कारोबार में पाई सफलता
दोनों क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी रहे हैं और साथ ही कारोबार में जमकर हाथ आजमाएं हैं। दोनों साथ मिलकर खेती से लेकर ट्रांसपोर्ट का मिलकर काम किया है। जिसमें दोनों ने काफी सफलता भी अर्जित की है। दोनों दोस्त का कहना है कि दोस्ती ही सबसे बड़ा धर्म हैं और हमें सभी धर्मों का सम्मान करने के साथ मानवता का भी ख्याल रखना चाहिए।