Move to Jagran APP

जीवन की सफलता का मूलमंत्र है आत्मसंयम

आत्मसंयम का अर्थ है मन को वश में रखना या इंद्रियों को वश में रखना। उन लोगों के जीवन में सबसे अधिक कष्ट आते हैं जोकि मन की चाल के साथ चलते हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 28 Oct 2020 11:46 PM (IST)Updated: Wed, 28 Oct 2020 11:46 PM (IST)
जीवन की सफलता का मूलमंत्र है आत्मसंयम
जीवन की सफलता का मूलमंत्र है आत्मसंयम

बुलंदशहर, जेएनएन। आत्मसंयम का अर्थ है मन को वश में रखना या इंद्रियों को वश में रखना। उन लोगों के जीवन में सबसे अधिक कष्ट आते हैं जोकि मन की चाल के साथ चलते हैं। इसलिए संतों और महापुरुषों ने भी अपने संदेशों में बार-बार कहा है कि मन को हमेशा नियंत्रण में रखें। जिस व्यक्ति का मन वश में होता वह जीवन में कभी पथभ्रष्ट नहीं हो सकता। किसी भी मनुष्य की पहचान उसके मन से होती है। आत्म संयम रखने वाला व्यक्ति सुखपूर्वक व्यतीत करता है। जिस पर तेज रफ्तार वाहन में दुर्घटना की संभावना होती है उसकी प्रकार तेज रफ्तार मन के साथ चलने वाले व्यक्ति के जीवन में कष्टों की संभावना रहती है। आत्म संयम एक दिन में नहीं आता है। इसके लिए वर्षो तक प्रयास करना पड़ता है। इसलिए प्रत्येक माता-पिता की जिम्मेदारी है कि बच्चे को आत्म संयमित बनाने के लिए संस्कार दें। बच्चे को बचपन से ही सिखाएं कि जिस वस्तु की आवश्यकता है उसके लिए ही प्रयत्न करें। समाज या आसपास में देखकर अपने मन को लालची न करें। आत्मसंयम के बिना ही लोभ और मोह व्यक्ति के मन में घर बनाते हैं। आत्मसंयम के बिना मन भटकता है। मन भटकेगा तो पढ़ाई में भी बच्चे का मन नहीं लगेगा। कोर्स तैयार करते समय, परीक्षा की तैयारी करते समय यदि विद्यार्थी का मन इधर-उधर भटकेगा तो उसका मन पढ़ाई में नहीं लगेगा। इससे वह परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने से वंचित रह जाएगा। मन भटकने पर परीक्षा भवन में बहुत से विद्यार्थी सब कुछ याद होते हुए भी भूल जाते हैं और प्रश्नपत्र सामने आते ही धैर्य खो बैठते हैं। इसलिए पढ़ाई करते समय ही विद्यार्थियों को अपने मन पर नियंत्रण रखना चाहिए। आत्मसंयम के अभाव में मन में क्रोध तथा अन्य अनेक प्रकार के विकार जन्म लेते हैं। विद्यार्थी ही नहीं व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में धैर्यवान मतलब आत्म संयमित रहने की आवश्यकता है। मनु स्मृति में कहा गया है कि जिस तरह दीमक अपने निवास के निर्माण के लिए धीरे-धीरे बांबी बनाती है उसी तरह परलोक में अपने जीवन को सुधारने के लिए किसी भी अन्य जीव को कष्ट पहुंचाए बिना पुण्य कर्मो का संग्रह करना चाहिये। अर्थात दृढ़निश्चय, दयालु तथा आत्म संयमी व्यक्ति ही स्वर्ग का अधिकारी बनता है और मरणोपरांत भी उसकी कीर्ति विद्यमान रहती है। एक और उदाहरण संसार में मनुष्य नहर बनाकर जल ले जाते हैं। बाण के निर्माता बाण को सीधा कर लेते हैं। बढ़ई भी सीधी लकड़ी को अपने उपयोग में आने योग्य बना लेते हैं। इसी प्रकार बुद्धिमान पुरुष भी आत्मसंयम करने में समर्थ होते हैं। भगवान राम ने जीवन में सहनशीलता दिखाई। इसलिए वह मर्यादा पुरुषोत्तम बन गए। न केवल श्री राम जी का बल्कि वास्तव में सभी महापुरुषों का जीवन सहनशीलता से भरा हुआ है। माता-पिता के साथ ही स्कूल और कालेजों में भी शिक्षक भी छात्र-छात्राओं को आत्मसंयम का जीवन में महत्व समझाएंगे तो उनके सुनहरे भविष्य का निर्माण करने में सहायता मिलेगी।

loksabha election banner

-डीके शर्मा, प्रबंधक, रज्जू भैया सैनिक विद्या मंदिर खंडवाया-शिकारपुर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.