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जीवामृत से केले की फसल में मिठास भर रहे सौरण

कृषि प्रधान जिले में एक 80 वर्षीय बुजुर्ग किसान ने सरकारी योजनाओं और अपने अनुभव के चलते पारंपरिक खेती को अलविदा कह दिया है। 30 बीघा जमीन के मालिक वृद्ध किसान तीन वर्षों से जैविक केले की खेती कर रहे हैं। जीवामृत से केले की फसल में मिठास भर रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 02 Dec 2020 07:30 AM (IST)Updated: Wed, 02 Dec 2020 07:30 AM (IST)
जीवामृत से केले की फसल में मिठास भर रहे सौरण
जीवामृत से केले की फसल में मिठास भर रहे सौरण

जेएनएन, बुलंदशहर। कृषि प्रधान जिले में एक 80 वर्षीय बुजुर्ग किसान ने सरकारी योजनाओं और अपने अनुभव के चलते पारंपरिक खेती को अलविदा कह दिया है। 30 बीघा जमीन के मालिक वृद्ध किसान तीन वर्षों से जैविक केले की खेती कर रहे हैं। जीवामृत से केले की फसल में मिठास भर रहे हैं। दिल्ली, नोएडा, अलीगढ़ और बुलंदशहर की मंडियों में वृद्ध किसान द्वारा उगाए केले चुटकियों में अच्छी कीमत पर बिक जाते हैं।

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डिबाई तहसील के दानपुर ब्लाक क्षेत्र के गांव तुलसीगढ़ी में सैकड़ों बीघा जमीन में केले की खेती हो रही है। इस खेती के जनक 80 वर्षीय किसान सौरण सिंह हैं। पूर्व में ये धान, गेहूं और गन्ने की खेती करते थे लेकिन उद्यान विभाग द्वारा केले की खेती के लिए अनुदान मिलने का पता चलने पर इन्होंने 10 बीघा जमीन में केले की खेती शुरू की। सौरण सिंह का कहना है कि जीवन के अंतिम पड़ाव में हैं और कुछ अलग करने की चाह की चिगारी अभी तक दिल में थी। कम लागत और अधिक आय पाने तथा किसानों को मार्गदर्शक बनने की चाह में केले की जैविक खेती करने की ठानी।

ऐसे मनाते हैं जीवामृत

सौरण सिंह ने बताया कि केले की खेती में वह उर्वरक अथवा पेस्टीसाइड का कतई भी प्रयोग नहीं करते। बताया कि जीवामृत बनाने के लिए पशुओं का गोबर, मूत्र, पुराना और खराब गुड़, तांबा और डी-कंपोजर को एक ड्रम में 12 दिनों तक रखा जाता है। फसल को पानी देने के दौरान ड्रम में एक पाइप लगाकर नाली में छोड़ दिया जाता है। नीम की पत्तियों से फसलों में रोग नहीं लगता और गुड़ से केले की मिठास बढ़ती है। ऐसे हुई आए दोगुनी

वृद्ध किसान का कहना है कि एक बीघा में आठ से 10 कुंतल गेहूं और 45 से 50 कुंतल गन्ने का उत्पादन होता था। गेहूं से 30 हजार और गन्ने से 40 हजार रुपये तक आय होती थी और 10 हजार रुपये लागत हो जाती थी। जीवामृत बनाने में मात्र एक हजार रुपये की लागत आती है। इन्होंने कहा..

सौरण सिंह केले का उत्पादन जैविक विधि से कर रहे हैं। इन्होंने अपने साथ-साथ एक दर्जन से अधिक किसानों को भी केले की खेती के लिए प्रेरित किया है।

- धीरेंद्र सिंह, जिला उद्यान अधिकारी


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