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LokSabha Election 2019 : न हुल्लड़बाजी, न हंगामा...चुपचाप घर से बूथ तक का सफर

मेरठ में हुए पहले चरण के चुनाव की भांति बुलंदशहर में भी आंकड़े प्रमाण हैं कि इस बार मतदाता उत्साही है और शांत रहकर सियासत को बुलंद भी कर रहा है।

By Ashu SinghEdited By: Published: Fri, 19 Apr 2019 02:35 PM (IST)Updated: Fri, 19 Apr 2019 02:35 PM (IST)
LokSabha Election 2019 : न हुल्लड़बाजी, न हंगामा...चुपचाप घर से बूथ तक का सफर
LokSabha Election 2019 : न हुल्लड़बाजी, न हंगामा...चुपचाप घर से बूथ तक का सफर

बुलंदशहर, [रवि प्रकाश तिवारी]। मतदाता इस बार नई पटकथा लिख रहे हैं। न हुल्लड़बाजी,न हंगामा और न गोलबंदी ..चुपचाप घर से बूथ तक का सफर और इसी खामोशी के साथ वापसी। रास्ते में जान-पहचान का कोई मिले तो बस दुआ-सलाम की औपचारिकता भर, लेकिन मतदाताओं की यह ‘बेरुखी’ सियासत के लिए अच्छी है। शाम को जब डले वोट गिने गए तो आंकड़ों ने घोषणा की कि लोकतंत्र के पर्व में हिस्सेदारी और नई सरकार के गठन की भागीदारी का ग्राफ पिछली बार की तुलना में कुछ ऊपर ही चढ़ा है। कम नहीं है।

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पहले चरण में भी दिखी ऐसी थी तस्वीर

पहले चरण में जो तस्वीर मेरठ और आसपास के जिलों में दिखी थी,गुरुवार को कुछ उसी तरह की तस्वीर बुलंदशहर लोकसभा सीट के मतदान के दौरान भी नजर आई। कुछ लोग इसे वोटरों की उदासीनता से जोड़कर देख रहे हैं तो कुछ कहते हैं ..इस बार वो करंट नहीं, लहर नहीं है। लेकिन शाम को जब वोटों का हिसाब मिलाया गया तो हिस्सेदारी पिछली बार से ज्यादा ही बैठी। आंकड़े प्रमाण हैं कि इस बार मतदाता उत्साही है और शांत रहकर सियासत को बुलंद भी कर रहा है।

फौजियों का गांव सैदपुर

फौजियों के गांव सैदपुर में लंबी कतार तो नहीं थी, लेकिन दिनभर ईवीएम की पी-पी की आवाज सभी पांच मतदान केंद्रों पर गूंजती रही। सुबह 11 बजे तक किसान-नौजवान अपने-अपने काम पर थे लिहाजा दोपहर में इन केंद्रों पर मतदान की गति बढ़ी और छह बजे आंकड़ा 62.56 फीसद पर जाकर ठहरा। बाकी कहां रह गए, तो बताया गया कि 300 से ज्यादा परिवार तो मेरठ शिफ्ट हो गए, 150 के आसपास गाजियाबाद में हैं, 20-25 दिल्ली में भी होंगे। वे नहीं आए। सैदपुर के बारे में थोड़ा बताते चलें कि प्रथम विश्वयुद्ध से ही रणभूमि में इस माटी के लाल अपना जौहर दिखाते रहे हैं। 1914 से 1919 तक चले युद्ध में इस गांव के 155 सपूत लड़े और 29 वीरगति को प्राप्त हुए। आजादी के बाद से शायद ही कोई युद्ध या ऑपरेशन रहा हो जिसमें इस गांव का पराक्रम न दिखा हो।

बुजुर्गो में युवा-सा जोश काबिले तारीफ

इससे ठीक विपरीत सदर विधानसभा क्षेत्र के ढिकौली की तस्वीर दिखी। दोपहर एक बजे तक 48 फीसद मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग कर लिया था। कतार टूटने का नाम नहीं ले रही थी। बुजुर्गो में युवा-सा जोश काबिले तारीफ था। पास के ही मालागढ़ गांव,जिसके बारे में कहा जाता है कि पुरानी रियासत का किला यहां पलट गया था, के बूथ दोपहर बाद सूने पड़ गए थे। पता किया तो पीठासीन अधिकारी ने बताया, सुबह से अब पीठ सीधी कर रहा हूं। सिर उठाने का भी मौका नहीं मिला था, अब तक इतने वोट पड़े हैं। मतलब अलग-अलग गांव में मतदान का अलग-अलग ट्रेंड, बिल्कुल पलट तस्वीरें।

स्याना के चिंगरावठी गांव का हाल

पिछले साल स्याना के चिंगरावठी गांव पर जो दाग लगा था, गांव वाले उस मनहूस पल को भुलाकर नई तस्वीर उकेरते देखे गए। गोकशी को लेकर धरना-प्रदर्शन के बीच यहां कोतवाल सुबोध कुमार व चिंगरावठी के सुमित की मौत हो गई थी। कई दिनों से चर्चा चल रही थी कि इस बार चिंगरावठी की आग में तप रहे कई परिवार गुस्से में नोटा दबाएंगे। लेकिन जब वोटरों के बीच इस बात की टोह ली गई तो बोले ..देखिए, वोट कहां कौन देगा, वह तो वही जाने लेकिन हम वादा करते हैं कि गांव का वोट बर्बाद नहीं होगा। ये दुष्प्रचार किसने, क्यों और किस मकसद से किया, यह तो वही जाने। यहां भी मतदाताओं के बीच शांति थी। इनके बूथ पर 11 बजे तक 30 फीसद से ज्यादा वोट डल चुका था। यानी उत्साह कितना था,वोटों में आप ही गिन लीजिए। हालांकि सुमित के पिता अमरजीत ने नोटा दबाने का दावा किया।

संदेशे इस बार सरहद से आ रहे हैं..

अशोक ली-लैंड में पश्चिमी उप्र के सेल्स की जिम्मेदारी निभाने वाले सैदपुर के युवा विकास सिरोही का मानना है कि इस बार का चुनाव थोड़ा अलग है। कह कोई कुछ नहीं रहा,लेकिन खेमेबाजी खूब है। दो ही पक्ष हैं। अब हावी कौन होगा,यह राज 23 मई को खुलेगा। विकास के दादा नरेंद्र सिंह के बारे में गांव वाले यह बताते नहीं थकते कि अलीगढ़ का दंगा रोकने के लिए उन्हें जिस भरोसे से डीएम बनाया गया था, वह उससे भी तेज निकले। इनके ही परिवार के लेफ्टिनेंट विजय सिंह सिरोही 71 के युद्ध में सिलहट में शहीद हो गए थे। फौज और पराक्रम की बात के बीच ही गांव के पूर्व प्रधान यह बताना नहीं भूलते कि इस बार स्थिति बार्डर फिल्म के गीत संदेशे आते हैं, से बिल्कुल उलट है। वे कहते हैं इस बार संदेशे सरहद से गांव की ओर आ रहे हैं। कितने परिवार बताऊं, बच्चों ने फोन कर घरवालों को समझाया है ..मौका छोडऩा नहीं।

सेल्फी प्वाइंट पर चहकते चेहरे एकाएक हो जाते हैं गंभीर

इस बार सबसे अधिक फोकस युवा मतदाताओं पर रहा। सोशल मीडिया पर सक्रिय युवा मतदान के बाद इसका इजहार दुनिया के बीच कर सकें इसके लिए सेल्फी प्वाइंट भी बनाए गए थे। खासकर युवतियां सेल्फी लेती दिखीं। मतदान के बाद सेल्फी के दौरान उनके चेहरे चहक रहे थे। पहली बार मतदान की खुशी झलक रही थी, लेकिन जैसे ही सेल्फी प्वाइंट वह छोड़तीं एकाएक उनका चेहरा भी गंभीर हो जाता। युवाओं को बहुत कुरेदने पर मतदान का जो उन्होंने आधार बताया उसमें विकास, महिला सुरक्षा, आत्मनिर्भरता, देश की वैश्विक छवि, सामरिक शक्ति प्रमुख थे।

हवा किधर की है ..अजी यह भी कोई पूछने की बात है

ढिकौली गांव के तीन बूथों पर लगभग 3100 वोट थे। यहां दो-एक राजपूतों का घर छोड़ बाकी मुस्लिम परिवार ही हैं। दोपहर तक कतार टूटने का नाम नहीं ले रही थी। महिलाओं की संख्या तुलनात्मक रूप से ज्यादा। मतदाता को टटोलने का प्रयास किया, पूछा सियासी हवा किस ओर बह रही है तो युवा रईस ने पलटकर सवालिया अंदाज में कहा..अजी देख नहीं रहे। समझ जाओ बस। 


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