दंपती का अहंकार, सिसकियों में बदल रहा बचपन का दुलार
पति-पत्नी के रिश्तों की डोर इतनी कमजोर हो गई है कि काउंसलिग के दौरान बचों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी उठाने को भी वह तैयार नहीं होते। महिला सेल पर आने वाले बचे शरारत करते हैं तो मां उन्हें पुलिस वाले अंकल का खौफ दिखाकर चुप कर देती हैं। ऐसे में दंपती के अहम की चक्की में बचपन लगातार पिस रहा है। तारीख पर आने वाले पापा को देखकर बचा चिल्लाता है पापा..पापा। पापा एकबारगी चेहरे पर मुस्कान लाता है और फिर नजरे फेर लेता है। रिश्तों की खींचतान में बचों के भविष्य तक की परवाह दंपती नहीं कर रहे हैं।
बुलंदशहर, जेएनएन। पति-पत्नी के रिश्तों की डोर इतनी कमजोर हो गई है कि काउंसलिग के दौरान बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी उठाने को भी वह तैयार नहीं होते। महिला सेल पर आने वाले बच्चे शरारत करते हैं तो मां उन्हें पुलिस वाले अंकल का खौफ दिखाकर चुप कर देती हैं। ऐसे में दंपती के अहम की चक्की में बचपन लगातार पिस रहा है। तारीख पर आने वाले पापा को देखकर बच्चा चिल्लाता है पापा..पापा। पापा एकबारगी चेहरे पर मुस्कान लाता है और फिर नजरे फेर लेता है। रिश्तों की खींचतान में बच्चों के भविष्य तक की परवाह दंपती नहीं कर रहे हैं।
परिवार परामर्श केंद्र पर सुबह से शाम तक रोजाना 20 से 25 मामलों की सुनवाई होती है। मां के साथ आने वाले बच्चे थोड़ी देर तक गुमसुम रहते हैं और फिर आसपास के लोगों से घुल-मिलकर किलकारी मारने और पार्क में खेलने में लीन हो जाते हैं। इन मासूमों को नहीं पता कि उनका आने वाला भविष्य पिता के साथ बीतेगा अथवा माता के साथ। या फिर नाना अथवा दादा-दादी के साथ उन्हें रहना पड़ेगा। अहंकारी दंपती भी बच्चों से उनके बचपन की खुशियां छीन रहे हैं और उनके पालन-पोषण की जिम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं होते। मां की ममता रोती है लेकिन मुफलिसी में उसका भविष्य खतरे में देख उसे सीने से चिपका लेती है और पुलिसकर्मियों से मामला विचाराधीन रहते बच्चे के पालन-पोषण का खर्च मांगने को विवश होती है।
केस : एक
नानू के साथ पार्क में घूमते समय विष्णु से अन्य बच्चे उसके पिता के बारे में पूछते हैं। पूछते हैं कि तू अपने नानू के साथ क्यों रहता है, तेरे पिता तुझे लेकर बाजार में क्यों नहीं जाते। क्या वो दूर रहते हैं या वो नहीं हैं। छह वर्षीय विष्णु उनके सवालों से सिहर जाता है और घर पहुंचकर जब मम्मी से पूछता है तो उसे बता दिया जाता है कि तेरे पापा को तेरी या मेरी फिक्र नहीं है। पुलिस के पास चलेंगे और शिकायत करेंगे। फिर एक दिन उसे पापा से मिलने के बहाने परिवार परामर्श केंद्र मे तारीख पर लाया जाता है। विष्णु काफी देर इंतजार देखता है और पापा नहीं आते तो मम्मी से बस यही कहता है पापा बुरे हो गए। इंतजार के बाद दोनों महिला सेल से लौट जाते हैं।
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केस : दो
जहांगीराबाद क्षेत्र की महिला तीन वर्षीय मोनू को साथ लेकर परिवार परामर्श केंद्र पर माह में दो बार काउंसलिग को आती है। काउंसलिग में उसका पति एक बार भी नहीं आया और वह बच्चे को सीने से लगाकर पति की राह देखती रहती है। बच्चा कुछ ही देर में इधर-उधर दौड़ने लगता है और उसकी मां पुलिस वाले अंकल का खौफ दिखाकर उसे चुप बैठने के लिए समझा लेती है।
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केस : तीन
अनूपशहर की देवकी जब डेढ़ वर्षीय सन्नी को लेकर परिवार परामर्श केंद्र पर पहुंचती है तो पहले से मौजूद पीड़ित महिलाएं पूछती हैं कि कितने दिन हो गए शादी को। देवकी बताती है चार वर्ष, क्या करते हैं, जवाब मिलता है नोएडा में नौकरी करते हैं। बच्चा तो पापा पर गया है। देवकी लंबी सांस लेकर कहती है हां शक्ल से तो गया तो अपने पापा पर ही है लेकिन अगर अक्ल से भी चला गया तो उसका क्या होगा। वो मुझे छोड़कर दूसरी के साथ शादी करना चाहते हैं।
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केस : चार
एक बच्चा गोद में और का हाथ पकड़कर एसएसपी कार्यालय में सहमे कदमों से परामर्श केंद्र पर कोतवाली देहात क्षेत्र की नंदनी पहुंचती है। उसे पता है कि उसकी काउंसलिग दोपहर को एक बजे तक होगी लेकिन वह सुबह 10 बजे इस आस में आती है कि दोनों बच्चों को ही देखकर इनके पिता का दिल पसीज जाए। काश वो सारे केस वापस कर उसे अपने साथ ले जाएं। बताती है कुछ गलती मेरी भी है, सासू से कई बार अभद्रता की तो पति तिलमिला उठा और अब बात अलग-अलग होने तक की नौबत आ गई है।
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इन्होंने कहा..
हमारी प्राथमिकता परिवार टूटने से बचाने की है। तीन से चार बार काउंसलिग की जाती है, 60 प्रतिशत तक महिला सेल रिश्तों को टूटने से बचा लेती हैं। जब कोई दंपती किसी भी कीमत पर साथ न रहने की जिद पकड़ता है तो मुकदमा दर्ज कर फैसला कोर्ट पर छोड़ दिया जाता है। बच्चे किसके साथ रहेंगे या पालन पोषण की जिम्मेदारी किसकी है, वहां तय होता है।
-संतोष कुमार सिंह, एसएसपी।