बंदरों को पकड़ने का नहीं इंतजाम, लोग परेशान
पिछले दस सालों में जिले में बंदरों को पकड़ने के लिए कभी कोई अभियान नहीं चला। नतीजन शहर से देहात तक बंदरों का आतंक बढ़ता ही जा रहा है। बंदरों के हमले से हर दिन तीस से अधिक लोग घायल हो रहे हैं। पिछले तीन सालों में चार लोगों की मौत भी बंदरों के हमले में छत से गिरकर हुई है।
जेएनएन, बुलंदशहर। पिछले दस सालों में जिले में बंदरों को पकड़ने के लिए कभी कोई अभियान नहीं चला। नतीजन शहर से देहात तक बंदरों का आतंक बढ़ता ही जा रहा है। बंदरों के हमले से हर दिन तीस से अधिक लोग घायल हो रहे हैं। पिछले तीन सालों में चार लोगों की मौत भी बंदरों के हमले में छत से गिरकर हुई है।
बुलंदशहर शहरी क्षेत्र के साथ ही खुर्जा, अनूपशहर, डिबाई, शिकारपुर, सिकंदराबाद, जहांगीराबाद और स्याना के साथ ही नरौरा के साथ ही अब देहात क्षेत्र में भी बंदरों का आतंक बढ़ने लगा है। जिला अस्पताल की ओपीडी में प्रतिदिन बंदरों और कुत्तों के हमले के शिकार 150 से अधिक लोग एंटी रैबीज वैक्सीन लगवाने के लिए पहुंचते हैं। इनमें तीस से 40 लोग बंदर काटे के मरीज होते हैं। बंदर काटे के मरीजों में भी महिला और बच्चों की संख्या अधिक होती है। सभासदों के साथ ही नगर के आम नागरिक भी नगरपालिका से कई बार बंदर पकड़वाने के लिए मांग कर चुके हैं। दो-तीन बार बोर्ड बैठक में भी बंदरों की समस्या उठ चुकी है लेकिन कभी भी बंदरों को पकड़ने के लिए अभियान नहीं चला। जाल लगवा रहे
बंदरों के हमले से परेशान लोग मकानों पर लोहे का जाल लगवाने लगे हैं। शहर की पाश कालोनी में लोग कपड़े सुखाने के लिए घर की छत तक पर जाल लगाते हैं। लंगूर भी पाल रहे
बंदरों को भगाने के लिए कुछ लोग लंगूर का भी सहारा ले रहे हैं। कई कालेज और इंस्टीट्यूट में लोगों ने लंगूर पाला हुआ है। कभी-कभी कालोनी में भी लंगूर को लोग घुमाते हैं। इन्होंने कहा
बंदरों की नसबंदी का पशुपालन विभाग से कोई लेना-देना नहीं है। ये जिम्मेदारी नगरपालिका या नगर निगम की होती है। हालांकि अब इसको पशु क्रूरता में शामिल कर लिया गया है।
-डा. राजीव कुमार सक्सेना बंदरों की समस्या शहर में है। इस बार बोर्ड बैठक में बंदरों के मुद्दे को रखा जाएगा।
-मनोज रस्तोगी, ईओ