बेटे के उपचार को दफ्तरों के चक्कर लगा रहा बेबस पिता
जन्म से ही देखने बोलने और चलने में सक्षम नहीं अपने बेटे का उपचार कराने को बेबस पिता दफ्तरों के चक्कर लगाते हुए थक चुका है। आर्थिक मदद के नाम पर महज उसे दस हजार रुपये मिले हैं लेकिन अभी कोई ऐसी खुराक नहीं मिल सकी। जिससे उसका बेटा ठीक हो सके।
जेएनएन, बुलंदशहर। जन्म से ही देखने, बोलने और चलने में सक्षम नहीं अपने बेटे का उपचार कराने को बेबस पिता दफ्तरों के चक्कर लगाते हुए थक चुका है। आर्थिक मदद के नाम पर महज उसे दस हजार रुपये मिले हैं, लेकिन अभी कोई ऐसी खुराक नहीं मिल सकी। जिससे उसका बेटा ठीक हो सके।
खुर्जा के मोहल्ला तरीनान निवासी मुशीर अहमद ने बताया कि वह एक पाटरी में मजदूरी करता है। उसके दो बेटे अब्दुल रज्जाक और अब्दुल रहमान हैं। छोटा चार वर्षीय बेटा अब्दुल रहमान जन्म से ही चलने, बोलने और देखने में सक्षम नहीं है। शुरूआत में उन्हें लगा कि बड़े होते-होते वह ठीक हो जाएगा। जिस कारण शुरूआत से ही उन्होंने उसकी काफी देखभाल भी की और चिकित्सकों को भी दिखाया, लेकिन समय बीतता गया, फिर भी रहमान अपने पैरों पर खड़ा तक नहीं हो सका। ना ही उसकी आंखों की रोशनी आई और ना ही उसकी आवाज सुनाई दी। ऐसे में बेटे का उपचार कराने के लिए कई चिकित्सकों से सलाह ली, लेकिन किसी ने भी ऐसा महरम नहीं दिया। जिससे मासूम ठीक हो सके। ऐसे में आर्थिक रूप से कमजोर मुशीर अपने बेटे का उपचार कराने को बेबस है। उसने सरकारी अस्पताल से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों के दफ्तरों के चक्का लगाए और अपने बेटे का उपचार कराने में मदद की गुहार लगाई, लेकिन मदद के नाम पर उसे मलेरिया कार्यालय से महज दस हजार रुपये मिले। मुशीर का कहना है कि वह बस अपने बेटे को ठीक देखना चाहता है। चाहे इसके लिए उसे किसी भी दफ्तार के चक्कर क्यों ना लगाने पड़ें।