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सरकारी भूमि पर रोपित पौधों का पुरसा हाल नहीं

वन विभाग और अन्य सरकारी विभागों ने जुलाई के पहले सप्ताह में जंगल ग्राम समाज की खाली जमीनों और सड़कों के किनारे 52 लाख पौध रोपित की गई थीं। इन पौधों की देखरेख का जिम्मा संबंधित विभागों और ग्राम पंचायतों को सौंपा गया है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 28 Jul 2021 10:42 AM (IST)Updated: Wed, 28 Jul 2021 10:42 AM (IST)
सरकारी भूमि पर रोपित पौधों का पुरसा हाल नहीं
सरकारी भूमि पर रोपित पौधों का पुरसा हाल नहीं

बिजनौर, जेएनएन। वन विभाग और अन्य सरकारी विभागों ने जुलाई के पहले सप्ताह में जंगल, ग्राम समाज की खाली जमीनों और सड़कों के किनारे 52 लाख पौध रोपित की गई थीं। इन पौधों की देखरेख का जिम्मा संबंधित विभागों और ग्राम पंचायतों को सौंपा गया है। वहीं देखरेख के अभाव में दस फीसदी से अधिक पौध नष्ट हो गई हैं।

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जनपद में छह जुलाई को वृहद पौधारोपण अभियान के दौरान विदुरकुटी, बैराज गंगा घाट समेत विभिन्न स्थानों पर 52 लाख पौध रोपित की गई थीं। सामाजिक वानिकी और रिजर्व फारेस्ट में रोपित की गई पौध की देखभाल वन विभाग के कर्मचारी करते हैं। विदुरकुटी और बैराज गंगा घाट पर रोपित की गई पौध के संरक्षण को अस्थाई रूप से व्यवस्था की गई है। नजीबाबाद ब्लाक की 131 ग्राम पंचायतों के स्कूलों, पंचायतघरों, सड़क किनारे एवं ग्राम समाज की खाली भूमि पर 28 हजार पौधे रोपित की गई थीं। स्कूल, पंचायत घर आदि स्थानों पर लगे पौधे सुरक्षित हैं, कितु सड़क किनारे व ग्राम समाज की खाली भूमि पर रोपित किए गए पौधों में से दस फीसदी पौध देखभाल के अभाव में नष्ट हो गए, इनमें से कुछ पौध पशुओं का चारा बन गए, तो कुछ पौधे पानी के अभाव में सूख गए। धामपुर ब्लाक की 97 ग्राम पंचायतों में ब्लाक व राजस्व विभाग द्वारा अलग-अलग स्थानों पर हजारों पौध रोपित की गई थी। देहात में इन पौधों की देखभाल की जिम्मेदारी ग्राम पंचायत स्तर पर सौंपी जाती है। सार्वजनिक स्थानों पर रोपित किए गए पौधे कुछ समय बाद ही देखभाल के अभाव में दम तोड़ देते हैं। इसी प्रकार अन्य ब्लाक नहटौर, स्योहारा और अफजलगढ़ में पौधे रोपे गए हैं। कई स्थानों पर वन विभाग के सहयोग से दोनों विभाग यह कार्य करते हैं। इन स्थानों पर वन विभाग भी पौधों की देखभाल करता है। जुलाई माह में रोपित की गई पौध का सत्यापन मार्च माह में वन विभाग की उच्च स्तरीय कमेटी गठित करेगी। पिछले साल हुई सत्यापन में पांच फीसदी पौध नष्ट होने का तथ्य उजागर हुआ था।

-डा. एम. सेम्मारन, डीएफओ


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