ज्यादा मतदान में जीती है जनता, चुना अपनी पसंद का नेता
चुनाव आते ही मतदाता जागरूकता का ढोल पीटा जाता है। फिर चाहे वह प्रशासनिक मशीनरी हो या राजनीति में रुचि रखने वाले लोग। मतदाता का जागरूक होना क्यों जरूरी है यह खुद मतदाता को ही समझना होगा।
बिजनौर, जागरण टीम। चुनाव आते ही मतदाता जागरूकता का ढोल पीटा जाता है। फिर चाहे वह प्रशासनिक मशीनरी हो या राजनीति में रुचि रखने वाले लोग। मतदाता का जागरूक होना क्यों जरूरी है, यह खुद मतदाता को ही समझना होगा। वर्ष 1969 और वर्ष 1980 के विधानसभा चुनाव परिणामों को देखें। 1969 के विधानसभा चुनाव में 70.8 प्रतिशत मतदान होने पर 27,965 वोट पाकर भी प्रत्याशी हार गया था। यहां जीत-हार का यह अंतर मात्र 173 वोट का था। वहीं, वर्ष 1980 के विधानसभा चुनाव में 34.9 प्रतिशत मतदान में मात्र 17,833 वोट पाकर भी प्रत्याशी जीत गया था। यहां जीत-हार का अंतर करीब साढ़े चार हजार वोट का था। ऐसे ही वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 65 प्रतिशत से अधिक मतदान होने से जीत-हार का अंतर मात्र दो हजार वोट का रहा था। आधे से अधिक मतदान में जीत का कम अंतर
वर्ष ----मतदान (प्रतिशत में) - जीत हार का अंतर (वोट की संख्या)
1962 ---66.4------ 2469
1967 ----- 72.6----- 12463
1969 ----- 70.8------ 173
2017 ----- 65.5------ 2002
(1967 का चुनाव एक अपवाद बना) आधे से कम मतदान में जीत का बड़ा अंतर
वर्ष ---- मतदान (प्रतिशत में) - जीत हार का अंतर (वोट की संख्या)
1974 ---- 48.6----- 5323
1977 -----38.1----- 13274
1980 ------ 34.9------ 4360
1985 -------42.2---- 9799
1989 -------45.6 ----- 4760
1991 -------48.1---- 15829 बोले नवमतदाता:
मतदान करने को लेकर मैं इतना रोमांचित हूं कि मुझे यह मौका मिला है कि मैं अपनी पसंद का नेता चुन सकूं। निश्चित ही मैं अपना वोट बड़ी सूझबूझ के साथ दूंगा।
-तन्मय सिघल -चाहे कोई जीते, चाहे कोई हारे, मुझे इस बात से फर्क नहीं पड़ता। लेकिन मैं अपने वोट से खिलवाड़ नहीं करूंगी। पूरी जानकारी कर, सोच-समझकर अच्छे प्रत्याशी को ही वोट दूंगी।
-कृति शर्मा