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कोरोना से उबरने के बाद फिर काम में जुटीं मधुलिका

लोग नौकरी को पैसा कमाने का मात्र एक जरिए मानते हैं लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जो ड्यूटी का निर्वाहन सेवाभाव से करते हैं। उनके सामने भले ही कितनी भी परेशानी आए वह अपने कर्तव्यों से पीछे नहीं हटते। जिला अस्पताल में ऐसी भी स्टाफ नर्स हैं मधुलिका जो कोरोना से संक्रमित हुई और क्वारंटाइन की अवधि पूरी होते ही फिर मरीजों की सेवा में जुट गईं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 12 May 2021 11:44 AM (IST)Updated: Wed, 12 May 2021 11:44 AM (IST)
कोरोना से उबरने के बाद फिर काम में जुटीं मधुलिका
कोरोना से उबरने के बाद फिर काम में जुटीं मधुलिका

बिजनौर, जेएनएन। लोग नौकरी को पैसा कमाने का मात्र एक जरिए मानते हैं, लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जो ड्यूटी का निर्वाहन सेवाभाव से करते हैं। उनके सामने भले ही कितनी भी परेशानी आए वह अपने कर्तव्यों से पीछे नहीं हटते। जिला अस्पताल में ऐसी भी स्टाफ नर्स हैं मधुलिका, जो कोरोना से संक्रमित हुई और क्वारंटाइन की अवधि पूरी होते ही फिर मरीजों की सेवा में जुट गईं।

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जान की परवाह नहीं की

जिला अस्पताल में कार्यरत स्टाफ नर्स मधुलिका एलन बताती हैं कि वह कई दिनों से बुखार से पीड़ित थीं। शरीर साथ नहीं दे रहा था, लेकिन रोगियों की चिता और कर्तव्यबोध उन्हें आराम करने की इजाजत नहीं दे रहा था। संक्रमित होने का खतरा नजर आने लगा। 21 अप्रैल को जांच कराई। 22 अप्रैल को जांच पाजिटिव आने की सूचना फोन पर मिली। जब सूचना मिली उस समय 103 बुखार था। इसके बाद खुद के पाजिटिव आने की जानकारी सीएमएस डा. ज्ञानचंद को दी। इस पर उन्होंने घर जाकर आराम करने के सलाह दी। फिजिशियन डा. राधेश्याम वर्मा से दवाओं की जानकारी ली और घर चली गई। खाने के लिए हुई परेशान

जब मैं समय से पहले ही घर लौटी तो बेटी काजल बेहद परेशान हुई, लेकिन हम दोनों ने हिम्मत से समय निकाला। मेरे संपर्क में आने से काजल भी संक्रमित हो गई। दोनों की हालत खराब थी। बाद में एक सहेली को फोन किया। उसने खाना भिजवाया। इसके बाद उनके परिचितों ने भी खाना भेजा। 12वें दिन वह ड्यूटी पर आ गईं। अब वह पूरी कर्तव्य निष्ठा से आने काम में जुटी हुई है। दुख है कि बद्री नहीं बच सके

समाज कल्याण अधिकारी बद्री विशाल उन दिनों बच्चा वार्ड में भर्ती थे। मैं उन्हें बार-बार ढांढस बंधाती रहीं कि वह जल्द ठीक हो जाएंगे। रिपोर्ट नहीं आने के कारण उन्हें एल-2 अस्पताल में शिफ्ट नहीं किया गया था। एक दिन उनकी तबीयत खराब हुई। वह और उनकी पुत्री स्ट्रेचर को खुद चलाकर आइसीयू ले गईं। बाद में उन्हें एक निजी एल-2 अस्पताल में रेफर कर दिया गया। जिस दिन उनकी मौत की जानकारी समाचार पत्र के माध्यम से मिली, बहुत दुख हुआ।


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