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लॉकडाउन ने पढ़ाया जैव विविधता का पाठ

लॉकडाउन ने पढ़ाया जैव विविधता का पाठ बिजनौर जेएनएन। पृथ्वी पर विभिन्न जातियों एवं प्रजातियों के जीव-जंतु पाए जाते हैं। भले ही जनमानस में इन सभी की उपयोगिता महसूस न होती हो लेकिन पृथ्वी के पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए यह सभी महत्वपूर्ण हैं। जब कोई प्रजाति विलुप्त हो जाती है अथवा विलुप्त होने के कगार पर होती है तो उसकी उपयोगिता हमें समझ आने लगती है। जैव विविधता दिवस अपना ध्यान इस ओर ले जाने का ही दिन है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 21 May 2020 10:26 PM (IST)Updated: Fri, 22 May 2020 06:06 AM (IST)
लॉकडाउन ने पढ़ाया जैव विविधता का पाठ
लॉकडाउन ने पढ़ाया जैव विविधता का पाठ

लॉकडाउन ने पढ़ाया जैव विविधता का पाठ

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बिजनौर, जेएनएन। पृथ्वी पर विभिन्न जातियों एवं प्रजातियों के जीव-जंतु पाए जाते हैं। भले ही जनमानस में इन सभी की उपयोगिता महसूस न होती हो, लेकिन पृथ्वी के पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए यह सभी महत्वपूर्ण हैं। जब कोई प्रजाति विलुप्त हो जाती है अथवा विलुप्त होने के कगार पर होती है, तो उसकी उपयोगिता हमें समझ आने लगती है। जैव विविधता दिवस अपना ध्यान इस ओर ले जाने का ही दिन है।

विश्व के वैज्ञानिकों ने मानव जनित उपक्रमों द्वार किए जा रहे प्रदूषण तथा किसी प्रजाति के अत्यधिक दोहन के कारण जैव-विविधता के नुकसान को महसूस किया और फिर 22 मई को अंतरराष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस मनाया जाने लगा। पूरा विश्व कोरोना वायरस महामारी से जूझ रहा है। लॉकडाउन लागू होने से औद्योगिक संस्थान और यातायात के साधन बंद किए गए थे। जिससे वायु, जल तथा ध्वनि प्रदूषण में कमी आई। औद्योगिक नगरों में वायु गुणवत्ता में सुधार हुआ।

साहू जैन कॉलेज के वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. मुकेश कुमार कहते हैं कि आजकल हम विभिन्न प्रकार के पक्षियों के कलरव, वन्य प्राणियों की आजादी का अनुभव कर रहे हैं। नदियां शांत, गतिशील और निर्मल हो गईं हैं। गंगा-यमुना स्वच्छ हो गई हैं, जिसे हजारों करोड़ की परियोजनाएं भी नहीं कर पाईं। आजकल गंगा में डॉल्फिन भी दिखाई देने लगी हैं। यह जैव विविधता के क्षेत्र में शुभ संकेत हैं। डॉ. मुकेश कुमार कहते हैं कि कोरोना ने नि:संदेह हमारी अर्थव्यवस्था को बड़ी चोट दी है, लेकिन हमें बहुत कुछ दिया भी है। कोरोना ने हमें अपनी आवश्यकताएं कम करना सिखाया है। कोरोना ने हमें सीवर तथा औद्योगिक कचरा नदियों में नहीं डालने की शिक्षा दी है। हमें शाकाहारी बनने, व्यायाम करने, साफ-सफाई की शिक्षा दी है। भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में भरोसा करना, गरीबों की सहायता करना सिखाया है। दमा और दिल के मरीजों की संख्या में कमी आई है।

कोरोना तो निश्चित रूप से चला जाएगा, लेकिन हमें बहुत बड़ी सीख देकर जाएगा। कोरोना के जाने के बाद लॉकडाउन के दौर में सीखी बातों पर ध्यान देंगे, तो ही पर्यावरण और जैव-विविधता को बचा पाएंगे। तभी प्रकृति और मानव समाज की बहुत बड़ी सेवा होगी।

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