ब्रिटिशकाल में लेखराज ने थाने पर फहराया था झंडा
बिजनौर जेएनएन। कोविड-19 की विभीषिका के बीच पूरा देश 74वें स्वतंत्रता दिवस के जश्न में डूबा
बिजनौर, जेएनएन। कोविड-19 की विभीषिका के बीच पूरा देश 74वें स्वतंत्रता दिवस के जश्न में डूबा है। आजादी के यज्ञ में आहुति देने वालों को उस दौर की घटनाएं ऐसे याद हैं, मानो कल की ही बात हो। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लेखराज सिंह कहते हैं, आजादी के मतवालों ने जिन सपनों और उद्देश्यों की खातिर आ•ादी की लड़ाई लड़ी, वह काफी हद तक पूरा हुआ है।
मूलरूप से गंज दारानगर निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लेखराज सिंह आजादी की लड़ाई लड़ रहे कांग्रेस के नरम दल में किशोर अवस्था में ही शामिल हो गए थे। उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी रतनलाल जैन, पंडित सोमदेव और दामोदर प्रसाद के साथ सबसे कम उम्र के सदस्य के रूप में ब्रिटिशकाल के पुराने थाने (वर्तमान में महिला थाना) पर झंडा फहराया था। पकड़े गए और अपने साथियों के साथ जेल जाना पड़ा। 1942 में नूरपुर में झंडा फहराये जाने की घटना के बाद वह भूमिगत हो गए। 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने के बाद ग्राम दारानगर गंज स्थित केवलानंद आश्रम में रहने लगे। वर्तमान में वह बैराज गंगा घाट के निकट नवलपुर गांव स्थित अपने आश्रम में रहते हैं। सरकार उन्हें पेंशन दे रही है। अब वह जनपद में अकेले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हैं। जिला प्रशासन भी प्रत्येक साल स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस पर उन्हें सम्मानित करता है।
वह बताते हैं, पराधीन भारत में अपने हक की बात कहने पर सजा मिलती थी, कितु आजाद भारत में हकों की आजादी है। अपनी बात किसी भी अफसर के सामने रखने के लिए प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र है।