पाच सौ सदी बाद भी विदुर को नहीं समझ पाए दुर्योधन
जेएनएन बिजनौर पांच सौ सदी पहले हस्तिनापुर के युवराज दुर्योधन महात्मा विदुर को नहीं समझ प
जेएनएन, बिजनौर : पांच सौ सदी पहले हस्तिनापुर के युवराज दुर्योधन महात्मा विदुर को नहीं समझ पाए थे। इसके बाद महाभारत जैसा युद्ध हुआ आज योगीराज के अफसर दुर्योधन बने हुए हैं। नीति निपुण, त्रिलोक ज्ञान के ज्ञाता की महात्मा विदुर की महानता को नहीं समझ पा रहे हैं। जिस कारण महात्मा विदुर की तपोस्थली विदुरकुटी भंवर में फंसी है। महाभारत कालीन पर्यटन स्थल होने के बावजूद विदुरकुटी का विकास नहीं कराया जा सका। हालांकि कई बार विदुरकुटी को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किए जाने की मांग उठती रहीं हैं, लेकिन अभी तक विकास की किरण विदुरकुटी तक नहीं पहुंच पाई।
विदुरकुटी का पौराणिक ²ष्टि से बहुत महत्व है और इसका इतिहास महाभारत कालीन है। यहां पर महात्मा विदुर के पदचिन्ह खुद में इतिहास संजोय हुए हैं। महाभारत युद्ध में बंधु-बांधवों के युद्ध करने पर अडिग रहने और सही सलाह नहीं मानने से आहत महात्मा विदुर सबकुछ त्यागकर हस्तिनापुर से गंगा पार करके मां गंगे के पूर्वी छोर पर बसी विदुरकुटी में आकर रहने लगे थे। उनके पास युद्ध में शहीद हुए योद्धाओं की पत्नियों एवं बच्चे भी आए थे और उन्हें निकट के गांव में ठहरा दिया गया था। पांच हजार साल पुरानी विदुरकुटी का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। बुजुर्गों का कहना है कि दुर्योधन के मेवे और पकवान त्यागकर आए भगवान श्रीकृष्ण ने महात्मा विदुर की कुटिया में बथुवे का साग खाना मंजूर किया था। भगवान श्रीकृष्ण को भोग लगाते हुए आज भी बथुआ संबंधी मंत्र का उच्चारण किया जाता है। वर्तमान में महात्मा विदुर के पदचिह भी विदुरकुटी में मौजूद है। वहीं विदुरकुटी में पूरे साल बथुवे की पैदावार होती है।
नागरिक कल्याण समिति समेत जनपद के कई संगठनों ने यूपी के तत्कालीन पर्यटन मंत्री कोकब हमीद और मूलचंद चौहान को ज्ञापन देकर विदुरकुटी को महाभारत सर्किट में शामिल किए जाने का मुद्दा उठाया था। विदुरकुटी में गंगा किनारे पुराने घाट बने हुए, कितु गंगा घाट से करीब पांच किलोमीटर दूर बह रही है। हालांकि तत्कालीन राज्यमंत्री स्वामी ओमवेश ने विदुरकुटी में बने पक्के घाटों से पूर्व गंग नहर से विदुरकुटी तक गंगा का पानी पहुंचाए जाने की कार्ययोजना मंजूर कराने के प्रयास किए, लेकिन यह कार्ययोजना अभी तक मंजूर नहीं है। इसके अलावा बिजनौर से हस्तिनापुर, दौराला होते हुए दिल्ली तक रेल लाइन का सर्वे कई बार हो चुका, कितु अभी रेल बिछाए जाने को मंजूरी नहीं मिली। बिजनौर सदर से बसपा सांसद मलूक नागर भी इस मुद्दे को लोकसभा में उठा चुके है, कितु अभी बिजनौर से हस्तिनापुर, दौराला होते हुए दिल्ली तक रेल लाइन बिछाने की योजना को मंजूरी नहीं मिली।