हाथ से बने कंडील अब बीते दिनों की बात
हाथ से बनाए जाने वाले कंडील के चलन से बाहर हो जाने के कारण इसे बनाने वाले हाथों ने अब अन्य कामों को तलाश लिया है। हाथ के बने कंडील महंगे होने के कारण अब बाजार से गायब हो गए हैं।
जेएनएन, बिजनौर। हाथ से बनाए जाने वाले कंडील के चलन से बाहर हो जाने के कारण इसे बनाने वाले हाथों ने अब अन्य कामों को तलाश लिया है। हाथ के बने कंडील महंगे होने के कारण अब बाजार से गायब हो गए हैं।
जमाना बदलने के साथ ही दीवाली पर बिकने वाले कंडील आदि का भी स्वरूप बदल गया है। मशीन से बने कंडील की अब सबसे ज्यादा मांग है। दीपावली पर्व को लेकर लोग बहुत समय पहले तैयारियों में जुट जाते थे। कंडील, विभिन्न आकृति के दीये, बिजली से चलने वाली झालरें आदि को तैयार करने में कारीगर महीनों पहले तैयारी करते थे, लेकिन समय के साथ इन्हें बनाने और बेचने के तरीके में भी बदलाव आया है। दीपावली पर शुभ के प्रतीक कंडील को कारीगर बांस से बनी हुई खरपच्चियों और पतंगी कागज से तैयार करते थे। हाथ से बने कंडीलों का स्थान डाई से बने कंडीलों ने ले लिया है। मशीन से बनी झालरों ने हाथ से बनी झालरों की हवा निकाल दी है। लगभग एक दशक से बाजार में हाथ से बने कंडील दिखाई देने बंद हो गए हैं।
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क्या कहते हैं कारीगर
हाथ से कंडील बनाने वाले नरेश, मुकेश बिजली की झालरें बनाने के कारीगर रोहित, देवराज तथा मिट्टी के दिए बनाने वाले उमेश, रामौतार का कहना है कि अब महंगाई इतनी बढ़ गई है कि बाजार से कच्चा सामान खरीदना ही मुश्किल हो गया है। कच्चा माल भी आसानी से नहीं मिल पाता। मेहनत ज्यादा लगने के बावजूद बने हुए सामान की कीमत नहीं मिल पाती। जब इस काम में मेहनत के बावजूद वह बच्चों का पेट नहीं भर सकते तो वह इस तरफ अपना ध्यान क्यों लगाएं।
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