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पंछी भी कहीं हिदू-मुसलमान न हो जाएं..

ये डालियां पेड़ों की परेशान न हो जाएं पंछी भी कहीं हिदू-मुसलमान न हो जाएं। इन नफरतों की आग के सैलाब को रोको बरसों में बसीं बस्तियां वीरान न हो जाएं।। इंसान को झकझोर देने और इंसानियत को तरजीह देने वाली इस गजल के गजलकार महेंद्र सिंह अश्क अपनी गजलों से मुस्लिम देशों में भी भारत की एकता-अखंडता सांप्रदायिक सौहार्द और गंगा-जमुनी तहजीब का लोहा मनवा चुके हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 25 Jan 2022 06:31 PM (IST)Updated: Tue, 25 Jan 2022 06:31 PM (IST)
पंछी भी कहीं हिदू-मुसलमान न हो जाएं..
पंछी भी कहीं हिदू-मुसलमान न हो जाएं..

बिजनौर, टीम जागरण। ये डालियां पेड़ों की परेशान न हो जाएं, पंछी भी कहीं हिदू-मुसलमान न हो जाएं। इन नफरतों की आग के सैलाब को रोको, बरसों में बसीं बस्तियां वीरान न हो जाएं।। इंसान को झकझोर देने और इंसानियत को तरजीह देने वाली इस गजल के गजलकार महेंद्र सिंह अश्क अपनी गजलों से मुस्लिम देशों में भी भारत की एकता-अखंडता, सांप्रदायिक सौहार्द और गंगा-जमुनी तहजीब का लोहा मनवा चुके हैं।

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78 वर्षीय महेंद्र अश्क कहते हैं कि कलमकार नाविक की उस पतवार की तरह होता है, जो खुद तो थपेड़े झेलती है, लेकिन डगमगाती कश्ती को भंवर में फंसने से बचा लेती है और दरिया पार भी करा देती है। वे कहते हैं कि जब देश अंग्रेजों की गुलामी के भंवर में फंसा था, तब हिदी-उर्दू साहित्य के संगम ने इंकलाब छेड़ा था। क्रांतिकारियों और साहित्यकारों ने मिलकर आजादी की लड़ाई को परवान चढ़ाया था।

-सांप्रदायिक सौहार्द के लिए महेंद्र लिखते हैं: अब कबीर के दोहे इसलिए जरूरी हैं, शायरी तास्सुब के फासले मिटाएगी। -बात मतदाता जागरूकता की आती है तो महेंद्र अश्क लिखते हैं: खूब हंसना है मुस्कुराना है, ये इलेक्शन तो एक बहाना है। वोट देना भी जिम्मेदारी है, वोट देने जरूर जाना है।।

-65 वर्ष के सफर में कीं लंबी यात्राएं

उर्दू गजल के महारथी महेंद्र अश्क मुस्लिम देशों पाकिस्तान, ईरान, दुबई, मस्कट, शारजाह में आयोजित हुए अव्वल दर्जे के मुशायरों में दो-दो बार शिरकत कर चुके हैं। 2020 और 2021 में उन्हें अमेरिका और इंग्लैंड भी जाना था, लेकिन कोरोना महामारी के चलते यह संभव नहीं हो सका।

-उर्दू विकास के लिए किया काम

वर्ष 1991 में जब सूबे में भाजपा की हुकूमत थी, उस जमाने में महेंद्र सिंह अश्क यूपी उर्दू एकेडमी के एग्जीक्यूटिव कमेटी के सदस्य रहे थे। उन्होंने एकेडमी की चेयरमैन लखनऊ यूनिवर्सिटी की उर्दू की प्रोफेसर एवं साहित्यकार सीमा रिजवी के साथ काम किया।

-महेंद्र की झोली में नामचीन अवार्ड

अल्लाम इकबाल अवार्ड (किरतपुर), रघुपति सहाय फिराक अवार्ड (आगरा), शाद अजीमाबादी अवार्ड (पटना), जिगर अवार्ड (मुरादाबाद), जहशर अवार्ड (कोलकाता), डा. कमाल अवार्ड (चेन्नई), अली सरदार जाफरी अवार्ड (मुंबई), नरेश कुमार शाद अवार्ड (चंडीगढ़), प्रेमवार बर्टनी अवार्ड (अंबाला), अजीम अमरोहवी अवार्ड (अमरोहा) समेत कई अवार्ड महेंद्र अश्क पा चुके हैं।


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