शिव की आराधना से मिलती है विष्णु की भक्ति
जागरण संवाददाता ज्ञानपुर(भदोही) पुरुषोत्तम मास को लेकर आस्थावान खासे उत्साहित हैं। वैसे तो
जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर(भदोही): पुरुषोत्तम मास को लेकर आस्थावान खासे उत्साहित हैं। वैसे तो हर तीन साल पर अधिकमास आता है लेकिन इस बार का संयोग 160 साल बाद आया है। केशव कृपाल जी महाराज बताते हैं कि वैसे यह मास भगवान विष्णु का प्रिय है लेकिन भगवान शिव की आराधना से विष्णु की भक्ति मिलती है। उन्होंने बताया कि भगवान नारायण ने मलमास की प्रार्थना से द्रवित होकर स्वयं अपना नाम पुरुषोत्तम दे दिया। इसके साथ ही अपनी भक्ति का साधन शिव की आराधना बताई। भगवान राम ने भी रामचरितमानस में नारद से संवाद करते हुए कहा था कि जेहि पर कृपा न करहि पुरारी, सो न पाव मुनि भगति हमारी। अनाथों के नाथ हैं बाबा हरिहरनाथ
स्वभाव से सौम्य देवाधिदेव बाबा भोलेनाथ जब भक्तों पर खुश हो गए तो धन-धान्य से झोली भर देते हैं और जब रूठ गए तो फिर क्या सर्वनाश होने से कोई रोक नहीं सकता है। काशी नरेश के वंशज हरिहरनाथ ने तालाब खोदाई और शिवलिग स्थापित कराने का जो संकल्प लिया उसे आज भी लोग याद करते हैं। उन्होंने करीब सौ वर्ष पहले बनारस स्टेट में शामिल भदोही जनपद के ज्ञानपुर नगर में ज्ञान सरोवर की खोदाई करवाई थी। तालाब की खोदाई करवाने के बाद यहां पर मंदिर का निर्माण कराकर शिवलिग की स्थापना कराई। शिवालय का नाम बाबा हरिहरनाथ रख दिया गया। सावन मास के अलावा अन्य दिनों में भी आस्थावानों की भीड़ लगी रहती है।
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पांडवकालीन बाबा तिगलेश्वर नाथ ऋतुओं संग बदलते हैं स्वरूप
अनगिनत आस्था-केंद्रों वाले हमारे विशाल देश में विशिष्टता वाले स्थल भी अनेक हैं लेकिन गोपीगंज के तिलंगा गांव स्थित तिगलेश्वरनाथ मंदिर इस अर्थ में अनोखा है कि यहां स्थापित शिवलिग का वर्ष में तीन बार स्वत: रंग परिवर्तन होता है। यह विशिष्टता इसे न केवल सर्वथा पृथक पहचान देती है बल्कि श्रद्धालुओं को विस्मित-विभोर भी करती चलती है। मान्यता है कि महाभारत काल में अपने अज्ञातवास के दौरान पांडव तिलंगा गांव से होकर गुजरे थे। उन्होंने यहां अपने विश्राम के दौरान अलौकिक एवं अद्वितीय शिवलिग की विधि-विधान से स्थापना कराई थी। कुएं में विराजमान हैं देवाधिदेव
काशी-प्रयाग के मध्य पतितपावनी गंगा नदी के किनारे स्थित है कुएं में विराजमान बाबा सेमराधनाथ का धाम दर्शनीय और रमणीय है। यहां पर स्थानीय के अलावा अन्य प्रदेश के साथ ही साथ विदेशी पर्यटक भी आते हैं। बाबा के इतिहास को लेकर विद्वानों का अलग-अलग मत है। अधिसंख्य विद्वान इसे पांडवकालीन बताते हैं। लक्षागृह से किसी तरह बचकर निकलने के बाद पांडव गंगा किनारे-किनारे इस स्थान पर पहुंचे, तो यहां रक्षा के लिए युधिष्ठिर ने शिवलिग की स्थापना की थी।