सियासी मैदान में कभी एक-दूसरे के खिलाफ ठोंक रहे थे ताल..
गिरगिट खतरा देखकर रंग बदलता है और इंसान मौका देखकर शायद यह पंक्ति इन दिनों संसद में पहुंचने लिए चल रही सियासी दांव-पेंच पर सटीक बैठता दिख रहा है। राजनीति में सब कुछ स्वभाविक है।
जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर (भदोही) : गिरगिट खतरा देखकर रंग बदलता है और इंसान मौका देखकर। शायद यह पंक्ति इन दिनों संसद में पहुंचने लिए चल रही सियासी दांव-पेंच पर सटीक बैठती दिख रही है। राजनीति में सब कुछ स्वभाविक है। इसी कारण तो कभी एक दूसरे के धुर-विरोधी रहे आज गले मिल रहे हैं। औराई विधानसभा सीट से आमने - सामने ताल ठोंक चुके पूर्व माध्यमिक शिक्षा मंत्री रंगनाथ मिश्र और भदोही के पूर्व विधायक जाहिद बेग जब एक मंच पर गले मिले तो हर किसी की जुबान पर सवाल उठना लाजिमी है। सभा के दौरान सवाल भी उठा तो जवाब भी मिला कि राजनीति में सबकुछ संभव है।
लोकसभा चुनाव को लेकर बसपा-सपा गठबंधन होते ही विपक्षी दल एक से बढ़कर एक तीर चलाने लगे। कोई गेस्ट हाउस कांड को याद दिलाने लगा तो कोई अखिलेश और मायावती के एक दूसरे पर पूर्व में लगाए गए आरोप-प्रत्यारोप। सिद्धांत भी यही है कि विरोधी को परास्त करने के लिए कुछ भी करना पड़े तो किया जा सकता है। विधानसभा चुनाव 2002 और 1996 में औराई सीट से रंगनाथ मिश्र और पूर्व विधायक जाहिद बेग एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोंक चुके हैं लेकिन हाई कमान के एक होते ही वह भी एक दूसरे के गले मिलकर पुरानी खटास भूलकर मुहिम में जुट गए।
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कभी तय होता था मैदान अब दिल में है सम्मान
- लोकसभा चुनाव में एक माननीय ने खुले मंच से मैदान तय करने को कहा था लेकिन सियासत ने ऐसा करवट बदला कि एक दूसरे को दिल दे बैठे। सरकारी कार्यक्रम हो या फिर प्राइवेट। शिलान्यास हो या फिर लोकार्पण। शिलापट्ट में दोनों का नाम और समारोह में गलबहियां होते देख, 2014 के चुनाव में मैदान तय करने वाली बात याद आते देर नहीं लगती है।